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Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 11 Shloka 11 | गीता अध्याय 3 श्लोक 11 अर्थ सहित | देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 11 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 11 in Hindi): श्रीमद्भगवद्गीता के तीसरे अध्याय का 11वाँ श्लोक (3.11) मनुष्य और देवताओं के बीच एक पवित्र संबंध स्थापित करता है। यह श्लोक बताता है कि यज्ञ के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न करने पर वे भी मनुष्यों को आशीर्वाद देते हैं, जिससे समाज में समृद्धि, शांति और सुख का वातावरण निर्मित होता है।

आज के आधुनिक युग में, जहाँ प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है और मानव जीवन तनावग्रस्त है, वहाँ यज्ञ की प्राचीन परंपरा फिर से प्रासंगिक हो रही है। इस लेख में हम श्लोक 3.11 का अर्थ, यज्ञ के प्रकार, वैज्ञानिक आधार और आधुनिक जीवन में इसकी उपयोगिता को विस्तार से समझेंगे।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 11 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 11)

गीता अध्याय 3 श्लोक 11 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 11 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 3 श्लोक 11 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 11 in Hindi with meaning)
Gita Chapter 3 Verse 11

गीता अध्याय 3 श्लोक 11: संस्कृत और हिंदी अर्थ

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ॥

शब्दार्थ:

  • देवान् – देवताओं को
  • भावयता – प्रसन्न करके
  • अनेन – इस यज्ञ से
  • ते – वे
  • देवाः – देवता
  • भावयन्तु – प्रसन्न करेंगे
  • वः – तुमको
  • परस्परम् – आपस में
  • भावयन्तः – एक दूसरे को प्रसन्न करते हुए
  • श्रेयः – कल्याण
  • परम् – परम
  • अवाप्स्यथ – प्राप्त करोगे

भावार्थ:

“इस यज्ञ द्वारा देवताओं को प्रसन्न करो, वे देवता भी तुम्हें प्रसन्न करेंगे। इस प्रकार परस्पर प्रसन्नता से तुम परम कल्याण प्राप्त करोगे।”

यज्ञ क्या है और यह क्यों आवश्यक है?

1. यज्ञ की परिभाषा

यज्ञ एक पवित्र वैदिक अनुष्ठान है जिसमें अग्नि में घी, जौ, तिल, औषधियाँ आदि समर्पित करके देवताओं को प्रसन्न किया जाता है। यह न केवल एक धार्मिक क्रिया है, बल्कि प्रकृति और मानव जीवन के बीच सामंजस्य बनाए रखने का एक वैज्ञानिक तरीका भी है

वेदों के अनुसार एक ऋषि यज्ञ कर रहा है, अग्नि में आहुति देते हुए, देवताओं की कृपा वर्षा के रूप में आ रही है
वेदों के अनुसार एक ऋषि यज्ञ कर रहा है, अग्नि में आहुति देते हुए, देवताओं की कृपा वर्षा के रूप में आ रही है

2. देवताओं की भूमिका

देवता प्रकृति के विभिन्न तत्वों के संचालक हैं। वेदों के अनुसार, वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी और आकाश सभी देवताओं के अधीन हैं।

  • अग्नि देव – ऊर्जा और ताप के प्रबंधक
  • वरुण देव – जल के नियंत्रक
  • इंद्र देव – वर्षा और मौसम के अधिपति
  • सूर्य देव – प्रकाश और ऊर्जा के स्रोत

यज्ञ करने से ये देवता प्रसन्न होते हैं और मनुष्यों को अन्न, जल, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करते हैं।

यज्ञ के प्रकार और उनका महत्व

वैदिक साहित्य में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है। इनमें से कुछ प्रमुख यज्ञ निम्नलिखित हैं:

1. पंचमहायज्ञ (प्रतिदिन के पाँच यज्ञ)

हिंदू धर्म में प्रतिदिन पाँच यज्ञ करने का विधान है:

  1. ब्रह्मयज्ञ – वेद पाठ द्वारा ऋषियों का सम्मान
  2. देवयज्ञ – अग्नि में आहुति देकर देवताओं की पूजा
  3. पितृयज्ञ – पितरों को तर्पण और श्राद्ध
  4. मनुष्ययज्ञ – अतिथि सेवा और दान
  5. भूतयज्ञ – पशु-पक्षियों को अन्न देना

2. विशेष यज्ञ (महायज्ञ)

  1. अश्वमेध यज्ञ – राज्य की समृद्धि और विजय के लिए
  2. राजसूय यज्ञ – राजा के अभिषेक के समय
  3. गोमेध यज्ञ – गौ संरक्षण और कृषि विकास हेतु
  4. नारायण यज्ञ – भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए

यज्ञ के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ

1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • वायु शुद्धि: यज्ञ में घी, गुग्गल, तुलसी जैसी सामग्री जलाने से वायु में मौजूद हानिकारक जीवाणु नष्ट होते हैं।
  • ओजोन परत को मजबूती: यज्ञ से निकलने वाला धुआँ वातावरण को शुद्ध करता है।
  • मानसिक शांति: यज्ञ के दौरान मंत्रोच्चारण और ध्यान से मन शांत होता है।

2. आध्यात्मिक लाभ

  • कर्मों का शुद्धिकरण – यज्ञ से पाप कर्मों का नाश होता है।
  • दैवीय कृपा – देवताओं की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • मोक्ष की प्राप्ति – निरंतर यज्ञ करने से मनुष्य भवसागर से मुक्ति पाता है।

आधुनिक युग में यज्ञ की प्रासंगिकता

आज के समय में यज्ञ की परंपरा कम होती जा रही है, लेकिन इसका महत्व अभी भी बना हुआ है:

1. पर्यावरण संरक्षण

  • यज्ञ से वृक्षारोपण और जल संरक्षण को प्रोत्साहन मिलता है।
  • प्रदूषण कम करने में यज्ञ की महत्वपूर्ण भूमिका है।

2. सामाजिक एकता

  • सामूहिक यज्ञ से समाज में भाईचारा बढ़ता है।
  • संस्कृति का संरक्षण – यज्ञ हमारी प्राचीन संस्कृति को जीवित रखता है।

3. स्वास्थ्य लाभ

  • यज्ञ से श्वास संबंधी रोग, तनाव और अनिद्रा जैसी समस्याओं में लाभ मिलता है।

निष्कर्ष: यज्ञ – एक समग्र जीवन पद्धति

श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक 3.11 का सार यह है कि यज्ञ के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न करना और उनके आशीर्वाद से समृद्धि प्राप्त करना मनुष्य का कर्तव्य है। यज्ञ न केवल एक धार्मिक कर्म है, बल्कि प्रकृति और मानव जीवन के बीच सामंजस्य बनाए रखने का एक वैज्ञानिक तरीका भी है

“यज्ञ से देव प्रसन्न, देवों से प्रकृति संतुलित और प्रकृति से मानव जीवन सुखमय।”

आज के युग में भी यज्ञ की परंपरा को जीवित रखकर हम प्राकृतिक संतुलन, सामाजिक सद्भाव और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं। यज्ञ एक पवित्र कर्म है जो हमें भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही स्तरों पर लाभान्वित करता है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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