Saraswati Puja 2026 Date: माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाने वाला बसंत पंचमी भारतीय संस्कृति का अत्यंत पवित्र और उल्लासपूर्ण त्योहार है। यह पर्व ऋतुओं के परिवर्तन, प्रकृति के सौंदर्य और नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। जैसे ही बसंत ऋतु का आगमन होता है, वातावरण में सुगंध, ऊर्जा और जीवन के नए रंग देखने को मिलते हैं। खेतों में खिली सरसों की पीली फसल, हल्की धूप, मंद-मंद हवा और प्रकृति का मुस्कुराता हुआ रूप इस दिन की सौम्यता को और अधिक बढ़ा देता है।

बसंत पंचमी को वसंत ऋतु का प्रथम उत्सव कहा जाता है, जो न सिर्फ मौसम के परिवर्तन का संकेत देता है, बल्कि मनुष्य के जीवन में उमंग और सृजन की तरंग भी भर देता है। भारतीय परंपरा में इस पर्व का संबंध ज्ञान, कला और विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती से होने के कारण यह और भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
हिन्दू धर्म में बसंत पंचमी का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही माँ सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। वे ब्रह्मा जी की पुत्री और विद्या, संगीत, कला, साहित्य तथा बुद्धि की देवी मानी जाती हैं। इसी कारण इस दिन को ज्ञान की नई शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। विद्यार्थी, कलाकार, संगीतकार, लेखक और विद्या से जुड़े सभी लोग इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते हैं और अपने कार्यक्षेत्र में सफलता की कामना करते हैं।
ऐसा विश्वास है कि बसंत पंचमी पर की गई साधना साधक के भीतर विद्या, विवेक और विचारों की स्पष्टता को बढ़ाती है। यह दिन अबूझ मुहूर्त माना जाता है, इसलिए लोग बिना किसी शुभ समय की बाध्यता के नए कार्यों, विद्यारंभ, शिक्षा एवं कलाओं से जुड़े अनुष्ठानों की शुरुआत करते हैं।
बसंत पंचमी केवल पूजा का अवसर नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जीवंतता और प्रकृति की सुंदरता का उत्सव भी है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करने और पीले व्यंजन बनाने की परंपरा इसलिए है क्योंकि पीला रंग प्रकृति में फैले सरसों के फूलों का प्रतीक माना जाता है। यह रंग समृद्धि, सकारात्मकता, स्फूर्ति और ज्ञान का प्रतीक है। कई स्थानों पर इस दिन छोटे बच्चों को पहली बार पढ़ने-लिखने की शुरुआत करवाई जाती है, जिसे ‘विद्यारंभ संस्कार’ कहा जाता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों और कला संस्थानों में बड़े उत्साह के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम और सरस्वती पूजा का आयोजन होता है, जो इस पर्व की महिमा को और अधिक बढ़ा देता है।
बसंत पंचमी कब है – 2026 की तिथि और समय
साल 2026 में बसंत पंचमी का पावन उत्सव शुक्रवार, 23 जनवरी 2026 को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि की शुरुआत 23 जनवरी की सुबह 02:28 बजे होगी और इसका समापन 24 जनवरी की सुबह 01:46 बजे होगा। इस दौरान भक्त माता सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा का सर्वोत्तम समय 23 जनवरी की सुबह 07:13 बजे से दोपहर 12:33 बजे तक माना गया है। इस अवधि में लगभग 5 घंटे 20 मिनट का अत्यंत शुभ मुहूर्त प्राप्त होगा, जिसमें विद्यार्थी, शिक्षक, कलाकार और सभी भक्त मां सरस्वती की आराधना कर सकते हैं। यह समय पूजा, जप, संगीत, अध्ययन और विद्या से जुड़े हर प्रकार के अनुष्ठान के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा का महत्व
बसंत पंचमी का सबसे प्रमुख पहलू मां सरस्वती की उपासना है। धार्मिक कथाओं में वर्णित है कि इसी दिन देवी सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी और ब्रह्मांड में ज्ञान का संचार हुआ था। इस कारण से बसंत पंचमी को ‘ज्ञानोत्सव’ भी कहा जाता है। श्रद्धा से की गई सरस्वती पूजा से बुद्धि का विकास होता है, स्मरण शक्ति प्रबल बनती है और व्यक्ति के भीतर कला तथा रचनात्मकता का संचार होता है। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों, पेन, नोटबुक, वाद्ययंत्र और अध्ययन सामग्री की पूजा करते हैं ताकि शिक्षा में सफलता प्राप्त हो सके। कलाकार अपने वाद्ययंत्रों, चित्रकारी के उपकरण और साहित्यकार अपनी लेखनी की पूजा कर विशेष आशीर्वाद मांगते हैं।
माना जाता है कि इस दिन पढ़ाई शुरू करने या किसी रचनात्मक कार्य की शुरुआत करने से सिद्धि प्राप्त होती है। पूजा के बाद वातावरण में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। विशेषकर बच्चों के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि विद्यारंभ की शुरुआत को देवी सरस्वती का संरक्षण प्राप्त माना जाता है। सरस्वती पूजा मनुष्य के जीवन को ज्ञान, विवेक और सृजन से भर देती है, इसलिए यह दिन सम्पूर्ण भारत में अत्यंत भक्ति भाव से मनाया जाता है।
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