Bahula Chauth 2025 Date: बहुला चौथ, भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माताएं व्रत रखकर भगवान श्रीकृष्ण, गौ माता और देवी गौरी की पूजा करती हैं। इस व्रत को गौ पूजन व्रत भी कहा जाता है क्योंकि इसमें गाय और उसके बछड़े की पूजा का विशेष विधान होता है।

बहुला चौथ व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने पुत्रों की रक्षा, दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा और भक्ति से व्रत करने पर निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस दिन गौ माता को समर्पित पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसा विश्वास है कि गाय के दूध पर उसका पहला अधिकार उसके बछड़े का होता है, इसलिए इस दिन गौ-उत्पादों का सेवन वर्जित माना गया है।
बहुला चौथ 2025 कब है? (Bahula Chauth 2025 Date)
साल 2025 में बहुला चौथ 12 अगस्त को मनाई जाएगी।
क्या न करें इस दिन
बहुला चौथ के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन आवश्यक होता है:
- इस दिन गेहूं और चावल से बने खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित होता है।
- गाय के दूध, दही, घी या किसी भी गौ-उत्पाद का प्रयोग नहीं किया जाता।
- व्रती केवल फलाहार करते हैं या निर्जला व्रत रखते हैं।
बहुला चौथ की पूजा विधि (Bahula Chauth Puja Vidhi)
सुबह की तैयारी:
- व्रत रखने वाली स्त्री को प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
- यदि घर में गाय है तो उसके स्थान को अच्छे से धो-पोंछकर साफ करना चाहिए।
- गाय और बछड़े को एक साथ रखने की परंपरा होती है ताकि बछड़ा अपनी माँ का दूध पी सके।
पूजा का विधान:
- संध्या समय गणेश जी, गौरी माता, श्रीकृष्ण और गौ माता की विधिवत पूजा की जाती है।
- मिट्टी की गाय और सिंह की प्रतिमा बनाकर या स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है।
- व्रत के दौरान श्रद्धालु “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करते हैं।
- पूजा के अंत में चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है।
बहुला चौथ की पौराणिक कथा (Bahula Chauth Katha)
बहुला चतुर्थी से जुड़ी एक प्राचीन और प्रेरणादायक कथा हमारे धर्मग्रंथों में वर्णित है, जो गौ माता की निष्ठा और सत्य के प्रति समर्पण को दर्शाती है।
प्राचीन काल में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं में भाग लेने के लिए सभी देवी-देवताओं ने गोप और गोपियों के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया था। उस समय कामधेनु नाम की दिव्य गाय के मन में भी यह भावना जागृत हुई कि उसे भी भगवान श्रीकृष्ण की सेवा करनी चाहिए। इसी भावना से प्रेरित होकर कामधेनु ने अपने अंश से बहुला नामक एक गाय का रूप लिया, जो जाकर नंद बाबा की गौशाला में रहने लगी।
भगवान श्रीकृष्ण को बहुला गाय से विशेष स्नेह हो गया। उनकी सेवा में बहुला हमेशा समर्पित रहती थी। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने बहुला की निष्ठा की परीक्षा लेने का निश्चय किया।
एक दिन जब बहुला जंगल में चारा चरने गई थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने सिंह का रूप धारण कर उसके सामने प्रकट हो गए। सिंह को देख बहुला भयभीत हो गई, परंतु उसने साहस नहीं खोया। वह सिंह से विनम्रता से बोली:
“हे वनराज, मेरा बछड़ा घर पर भूखा है। कृपया मुझे एक बार जाने दीजिए ताकि मैं उसे दूध पिला सकूं। वचन देती हूँ कि उसके बाद मैं स्वयं लौटकर आपकी आहार बन जाऊंगी।”
सिंह के स्वरूप में भगवान ने उसे उत्तर दिया,
“यदि तुम लौटकर नहीं आईं तो मैं भूख से मर जाऊँगा। कैसे विश्वास करूं कि तुम वापस आओगी?”
बहुला ने निडरता से उत्तर दिया,
“मैं धर्म और सत्य की शपथ लेकर कहती हूँ कि मैं अवश्य लौटूँगी।”
बहुला की सत्यनिष्ठा और धर्म के प्रति दृढ़ विश्वास से प्रसन्न होकर सिंह बने भगवान श्रीकृष्ण ने उसे जाने की अनुमति दे दी। बहुला तुरंत अपने बछड़े के पास पहुँची, उसे दूध पिलाया और अपने वचन के अनुसार पुनः जंगल में लौट आई।
अपनी निष्ठा और मातृत्व भावना को निभाते हुए बहुला जैसे ही लौटी, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर कहा:
“हे बहुला! तुम मेरी परीक्षा में सफल रही। तुम्हारी निष्ठा, प्रेम और सत्य के प्रति समर्पण अतुलनीय है। इसलिए आज से भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को तुम्हारे नाम से व्रत रखा जाएगा और गौ माता के रूप में तुम्हारी पूजा की जाएगी। जो भी श्रद्धा से यह व्रत करेगा, उसे संतान सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी।”
कथा से मिलने वाली शिक्षा
बहुला चतुर्थी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि वचनबद्धता, धर्म और मातृत्व के प्रति समर्पण के आगे कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती—even अगर वह सिंह रूप में ईश्वर ही क्यों न हो। बहुला का साहस और निष्ठा आज भी महिलाओं को संतान सुख की कामना में यह व्रत करने की प्रेरणा देती है।
बहुला चौथ का सामाजिक और धार्मिक संदेश
बहुला चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और नैतिक संदेश भी देता है। यह व्रत मातृत्व, निःस्वार्थ प्रेम, और सत्य के प्रति समर्पण की शिक्षा देता है। आज के युग में यह व्रत हमें यह भी सिखाता है कि प्रकृति, पशुओं और उनके अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
बहुला चौथ व्रत माताओं की श्रद्धा, विश्वास और पुत्रों के प्रति उनके प्रेम का अनूठा प्रतीक है। यह व्रत हमें न केवल धार्मिक आस्था से जोड़ता है, बल्कि हमें कर्तव्य, प्रेम और सेवा जैसे मूल्यों की ओर भी प्रेरित करता है। इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति, पारिवारिक सुख-शांति और मानसिक शुद्धता मिलती है।
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FAQs
बहुला चौथ 2025 में कब है?
बहुला चौथ 2025 में 12 अगस्त,को मनाई जाएगी। यह व्रत भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है।
बहुला चौथ का व्रत कौन और क्यों करता है?
यह व्रत मुख्यतः माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि निःसंतान महिलाएं इस व्रत को करने से संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं।
बहुला चौथ पर क्या पूजा की जाती है और कैसे?
इस दिन महिलाएं गौ माता, भगवान श्रीकृष्ण, गणेश जी और देवी गौरी की पूजा करती हैं। मिट्टी की गाय और सिंह की प्रतिमा बनाकर या स्थापित कर पूजन किया जाता है। दिनभर उपवास रखकर शाम को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है।
बहुला चौथ पर क्या खान-पान वर्जित होता है?
बहुला चौथ के दिन गाय के दूध, दही, घी तथा अन्य गौ-उत्पादों का सेवन वर्जित होता है। इसके अलावा गेहूं और चावल से बनी वस्तुएँ भी नहीं खाई जातीं। व्रतधारी केवल फलाहार करते हैं या निर्जला व्रत रखते हैं।