सावन मास को भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महीना माना गया है। इस महीने में यदि प्रदोष व्रत आता है, तो उसकी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है। यह व्रत न केवल शिवभक्तों के लिए विशेष होता है, बल्कि यह संपूर्ण श्रद्धालुजनों के लिए भी अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। सावन में जब प्रदोष व्रत का योग बनता है, तो शिव उपासना का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस व्रत को रखने का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना होता है।
प्रदोष व्रत हिंदू धर्म की उन विशेष उपासना पद्धतियों में से एक है, जिसे त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। यह तिथि हर मास के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आती है। इस दिन प्रदोष काल में, अर्थात् दिन और रात के संधिकाल में भगवान शिव की विधिवत पूजा की जाती है। शास्त्रों में प्रदोष काल को शिव आराधना के लिए अत्यंत शुभ और फलदायक समय बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस समय भगवान शिव अपने भक्तों की प्रार्थना शीघ्र सुनते हैं और उन पर विशेष कृपा करते हैं।

सावन माह में प्रदोष व्रत का महत्व
सावन का महीना हिंदू धर्म में भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे पवित्र और शुभ समय माना जाता है। यह संपूर्ण माह शिवभक्ति, जप-तप, व्रत और उपवास के लिए अत्यंत विशेष होता है। ऐसी मान्यता है कि सावन मास में की गई भगवान शिव की उपासना शीघ्र फल देने वाली होती है। इस पावन महीने में जब त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत आता है, तो उसकी धार्मिक और आध्यात्मिक महत्ता कई गुना बढ़ जाती है।
प्रदोष व्रत विशेष रूप से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है और जब यह व्रत सावन के शुभ माह में आता है, तब इसका प्रभाव और भी दिव्य और पुण्यदायक हो जाता है। इस दिन श्रद्धालु दिनभर उपवास रखते हैं और संध्या काल में, जिसे ‘प्रदोष काल’ कहा जाता है, शिवलिंग का जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण, धूप-दीप और मंत्रोच्चारण के साथ विधिपूर्वक पूजन करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से साधक को शिव कृपा की प्राप्ति होती है, पापों से मुक्ति मिलती है तथा जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। शिव भक्तों के लिए सावन में प्रदोष व्रत एक अत्यंत शुभ अवसर होता है, जो आध्यात्मिक उत्थान और ईश्वर से साक्षात्कार की दिशा में एक महत्वपूर्ण साधना के रूप में प्रतिष्ठित है।
सावन प्रदोष व्रत 2025: तिथि और व्रत विधि
सावन मास के पावन अवसर पर आने वाला शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 6 अगस्त 2025, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। यह दिन बुध प्रदोष व्रत के रूप में विशेष श्रद्धा और विधिपूर्वक भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित होगा। सावन मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है, अतः इस दिन व्रत रखने और पूजन करने का विशेष महत्व है।
प्रदोष व्रत की पूजन विधि
प्रदोष व्रत के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद शांत मन से शिवलिंग या घर के पूजा स्थल पर बैठकर व्रत का संकल्प लें। संकल्प लेते समय भगवान शिव से इस व्रत को सफलतापूर्वक पूर्ण करने की प्रार्थना करें। पूरे दिन शिव नाम का जप करते रहें।
भक्त इस दिन फलाहार करते हैं, जिसमें फल, दूध, और सरल भोजन का सेवन किया जाता है। कुछ श्रद्धालु कठोर नियमों का पालन करते हुए निर्जल उपवास भी करते हैं। संध्या के समय प्रदोष काल में दीप जलाकर, बेलपत्र, धतूरा, आक, और शुद्ध जल से शिवलिंग का अभिषेक कर विधिवत पूजन किया जाता है। इस व्रत के माध्यम से भक्त भगवान शिव की कृपा पाने की कामना करते हैं और जीवन के कष्टों से मुक्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।
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FAQs
सावन प्रदोष व्रत 2025 में कब रखा जाएगा?
सावन माह का शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत 6 अगस्त 2025, बुधवार को मनाया जाएगा। यह व्रत बुध प्रदोष व्रत के रूप में मनाया जाएगा, जो भगवान शिव को समर्पित है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि क्या होती है?
प्रदोष व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और शिवलिंग अथवा घर के मंदिर में बैठकर व्रत का संकल्प लें। दिनभर उपवास रखें और संध्या के समय प्रदोष काल में शिवलिंग का जल, बेलपत्र, धतूरा आदि से पूजन करें। मंत्र जाप और आरती के साथ व्रत संपन्न करें।
प्रदोष व्रत में क्या खाया जा सकता है?
इस व्रत में फलाहार करना श्रेष्ठ माना जाता है। उपवासी फल, दूध, मखाने, साबूदाना आदि का सेवन कर सकते हैं। कुछ भक्त श्रद्धा अनुसार निर्जल उपवास भी करते हैं।
सावन में प्रदोष व्रत क्यों विशेष माना जाता है?
सावन मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है और प्रदोष व्रत भी शिव उपासना का विशेष अवसर है। जब यह व्रत सावन में आता है, तो इसका पुण्यफल और अधिक बढ़ जाता है, जिससे शिव कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति आती है।