Last Updated: 14 April 2025
Annapurna Jayanti 2025: अन्नपूर्णा जयंती हिंदू धर्म के पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस दिन माता अन्नपूर्णा की पूजा-आराधना की जाती है, जो भोजन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। देवी पार्वती का यह पावन स्वरूप भक्तों को सुख, शांति और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। आइए, इस लेख में हम अन्नपूर्णा जयंती 2025 की तिथि, पूजा विधि, महत्व और कुछ विशेष व्यंजनों के बारे में विस्तार से जानें।

अन्नपूर्णा जयंती 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त (Annapurna Jayanti 2025 Date)
अन्नपूर्णा जयंती हर साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि 4 दिसंबर को पड़ रही है। अभी तक शुभ मुहूर्त की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ समय और समापन समय अवश्य ही ज्योतिषाचार्यों द्वारा घोषित कर दिया जाएगा। आप किसी भी पंचांग या ज्योतिषी से इस संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
अन्नपूर्णा जयंती का धार्मिक महत्व (Annapurna Jayanti Mahatva)
अन्नपूर्णा जयंती का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। आइए, इस दिन के प्रमुख धार्मिक महत्वों को समझते हैं:
- भोजन और समृद्धि का आशीर्वाद: देवी अन्नपूर्णा को भोजन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। उनकी कृपा से भक्तों के घर में अन्न की कभी कमी नहीं होती है। अन्नपूर्णा जयंती के दिन उनकी विधि-विधान से पूजा करने से भंडार हमेशा भरे रहते हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है।
- सुख-शांति का वास: अन्नपूर्णा जयंती पर माता की पूजा करने से घर में सुख-शांति का वास होता है। मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा अपने भक्तों के कष्ट दूर करती हैं और उनके जीवन में शांति लाती हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: अन्नपूर्णा जयंती पर माता की आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। भक्तों का मानना है कि देवी की कृपा से जीवन-मुक्ति का मार्ग सुलभ होता है।
- दान का पुण्य: अन्नपूर्णा जयंती के पावन अवसर पर दान का विशेष महत्व है। इस दिन अन्न, वस्त्र, दक्षिणा आदि का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करने से माता अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों का जीवन सुखमय बनाती हैं।
अन्नपूर्णा जयंती की विधि-विधान (Annapurna Jayanti Puja Vidhi)
अन्नपूर्णा जयंती मनाने के लिए विशेष तैयारी की आवश्यकता होती है। आइए, इस दिन की पूजा विधि को विस्तार से जानते हैं:
- पूजा की तैयारी: अन्नपूर्णा जयंती से एक दिन पहले घर की साफ-सफाई कर लें। पूजा स्थान को भी गंगाजल से शुद्ध करें। पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे लाल कपड़ा, चौकी, देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति या तस्वीर, दीपक, अगरबत्ती, धूप, फल, फूल, मिठाई, पंचामृत, पान का बीड़ा, सुपारी आदि इकट्ठा कर लें।
- स्नान और ध्यान: पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद ध्यान लगाकर पूजा के लिए अपना मन शांत करें।
- आसन ग्रहण: पूजा स्थान पर आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
- मूर्ति/तस्वीर स्थापना: आसन ग्रहण करने के बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इस लाल कपड़े पर देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मूर्ति या तस्वीर को गंगाजल से शुद्ध करें और फिर उन्हें पुष्पों से सजाएं।
- षोडशोपचार पूजन: अब देवी अन्नपूर्णा का षोडशोपचार पूजन प्रारंभ करें। सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन करें ताकि कोई भी विघ्न बाधा उत्पन्न न हो। इसके बाद देवी का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें। फिर उन्हें आचमन कराएं और स्नान कराएं। इसके बाद वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। देवी को इत्र, सिंदूर, कुमकुम, चंदन का टीका लगाएं। साथ ही धूप, दीप और आरती अर्पित करें।
- मंत्र जाप: देवी अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त करने के लिए इस दिन “ॐ श्रीं अन्नपूर्णे देव्यै नमः” मंत्र का जप करना शुभ माना जाता है। आप “अन्नपूर्णा चालीसा” का पाठ भी कर सकते हैं।
- भोग और नैवेद्य: पूजा के उपरांत देवी अन्नपूर्णा को भोग लगाएं। उन्हें खीर, पूड़ी, हलवा, सब्जी और फलों का भोग अर्पित करना शुभ होता है। भोग लगाने के बाद आरती करें और फिर प्रसाद ग्रहण करें।
- दान का महत्व: अन्नपूर्णा जयंती पर दान का विशेष महत्व है। गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, दक्षिणा आदि का दान करें। आप किसी गौशाला में गाय को हरा चारा भी खिला सकते हैं। दान करने से माता अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों का कल्याण करती हैं।
- ब्राह्मण भोजन: अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराएं। ब्राह्मणों को भोजन कराने से अन्नपूर्णा जयंती का पुण्य और फल कई गुना बढ़ जाता है।
- पूजा का समापन: अंत में पूजा का समापन करें। पूजा स्थल की साफ-सफाई करें और प्रसाद का वितरण करें।
अन्नपूर्णा जयंती के विशेष भोजन
अन्नपूर्णा जयंती के पावन अवसर पर कुछ विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं, जिन्हें भोग के रूप में देवी को अर्पित किया जाता है। आइए, जानते हैं इन विशेष भोजनों के बारे में:
- खीर: खीर को अत्यंत शुभ और पवित्र भोजन माना जाता है। अन्नपूर्णा जयंती पर देवी को खीर का भोग अवश्य लगाएं। आप चाहें तो खीर में मेवे और खजूर डालकर उसका स्वाद बढ़ा सकते हैं।
- पूरी: पूरिया एक स्वादिष्ट और लोकप्रिय व्यंजन है। अन्नपूर्णा जयंती पर देवी को पूरियों का भोग लगाना शुभ होता है। आप चाहें तो आलू की सब्जी या छोले के साथ पूरियों का भोग लगा सकते हैं।
- हलवा: हलवा एक मीठा और स्वादिष्ट व्यंजन है। अन्नपूर्णा जयंती पर देवी को सूजी का हलवा या सेवई का हलवा का भोग लगाया जा सकता है। आप चाहें तो हलवे में मेवे और इलायची डालकर उसका स्वाद और भी लजीज बना सकते हैं।
- सब्जी: अन्नपूर्णा जयंती पर देवी को विभिन्न प्रकार की सब्जियों का भोग लगा सकते हैं। आप चाहें तो आलू की सब्जी, पालक की सब्जी, या लौकी की सब्जी बना सकते हैं। सब्जियों को सात्विक विधि से बनाएं और उनमें हींग या प्याज का प्रयोग न करें।
- फल: फलों को भी शुभ और पवित्र माना जाता है। अन्नपूर्णा जयंती पर देवी को मौसमी, केला, सेब, संतरा आदि फलों का भोग लगा
अन्नपूर्णा जयंती की कथा (Annapurna Jayanti Katha)
हिंदू धर्म में अन्नपूर्णा जयंती से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर तपस्या में लीन थे। उनकी तपस्या के प्रभाव से तीनों लोकों में अकाल पड़ गया। जीव-जंतु भूख से व्याकुल हो गए। तब माता पार्वती ने भगवान शिव का ध्यान भंग करने के लिए एक दरिद्रा और भूख से व्याकुल महिला का रूप धारण किया।
माता पार्वती के इस रूप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें भोजन कराने का आग्रह किया। माता पार्वती ने कहा कि उनके पास भोजन नहीं है। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से भिक्षा मांगने के लिए कहा। माता पार्वती भिक्षा मांगने के लिए पृथ्वी पर चली गईं।
पृथ्वी पर माता पार्वती को कोई भी भोजन नहीं दे सका। अंत में, उन्हें एक गरीब ब्राह्मण का घर दिखाई दिया। ब्राह्मण के घर में भी सिर्फ एक बचा हुआ अन्न का दाना था। उस ब्राह्मण की पत्नी ने माता पार्वती को वही एक दाना दे दिया।
माता पार्वती उस अन्न के दाने को लेकर कैलाश पर्वत वापस लौटीं। उस अन्न के दाने से माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धारण किया। उनके हाथों में अन्न से भरे अक्षय पात्र प्रकट हुआ। उन्होंने भगवान शिव और सभी देवताओं को भोजन कराया। इसके बाद माता अन्नपूर्णा ने तीनों लोकों में भी भोजन का वितरण किया। तब जाकर अकाल समाप्त हुआ और जीव-जंतुओं को भोजन मिल सका।
तभी से माता अन्नपूर्णा को भोजन की देवी के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि अन्नपूर्णा जयंती के दिन उनकी पूजा करने से घर में अन्न की कमी नहीं होती है और सुख-समृद्धि का वास होता है।
अन्नपूर्णा जयंती के व्रत का महत्व (Annapurna Jayanti Vrat ka Mahatva)
कुछ लोग अन्नपूर्णा जयंती के दिन व्रत भी रखते हैं। इस व्रत को करने से भक्तों को अन्नपूर्णा देवी का विशेष आशीर्वाद मिलता है। व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद संकल्प लेकर पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। शाम के समय अन्नपूर्णा देवी की पूजा करके फलाहार ग्रहण कर सकते हैं। अगले दिन स्नान आदि करके पारायण करने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
अन्नपूर्णा जयंती का पर्यावरण से भी गहरा संबंध है। अन्नपूर्णा जयंती हमें अन्न की महत्ता का बोध कराती है। हमें सदैव अन्न का सम्मान करना चाहिए और अन्न को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। अन्नपूर्णा जयंती के दिन वृक्षारोपण करना भी शुभ माना जाता है। वृक्ष ही हैं जो हमें अन्न प्रदान करते हैं। अतः वृक्षों का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
इस प्रकार, अन्नपूर्णा जयंती भोजन और समृद्धि का पर्व है। इस दिन माता अन्नपूर्णा की पूजा करने से हमें भोजन की कमी नहीं होती है और सुख-शांति का वास होता है। साथ ही, यह पर्व हमें अन्न के महत्व और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। आइए, इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाएं और माता अन्नपूर्णा का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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