You are currently viewing Ambubachi Mela 2024 :आज से शुरू होगी कामाख्या देवी मंदिर में अंबुबाची मेला, ब्रह्मपुत्र नदी का पानी बदलेगा रंग

Ambubachi Mela 2024 :आज से शुरू होगी कामाख्या देवी मंदिर में अंबुबाची मेला, ब्रह्मपुत्र नदी का पानी बदलेगा रंग

असम के गुवाहाटी शहर में स्थित नीलाचल पहाड़ी पर विराजमान माँ कामाख्या मंदिर, हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहाँ देवी सती के विभिन्न अंग गिरे थे। माँ कामाख्या मंदिर साल भर श्रद्धालुओं से गुलजार रहता है, लेकिन साल में एक बार आयोजित होने वाला अंबुबाची मेला यहाँ का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और स्त्री शक्ति के प्रति श्रद्धा का भी भाव जगाता है। आइए, इस लेख में हम अंबुबाची मेला से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियों का विस्तार से अध्ययन करें।

Ambubachi Mela 2024

अंबुबाची मेला का शुभारंभ और अवधि (Ambubachi Mela 2024 Date)

अंबुबाची मेला का आयोजन हर साल अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से प्रारंभ होता है। वर्ष 2024 में, अंबुबाची मेला 22 जून से शुरू होकर 26 जून तक चला। आमतौर पर, मेले की अवधि चार दिन की होती है।

मंदिर में पूजा का विशेष विधान (Ambubachi Mela Legislation)

अंबुबाची मेला के दौरान माँ कामाख्या देवी के मंदिर में पूजा का विशेष विधान अपनाया जाता है। माना जाता है कि इन चार दिनों में देवी कामाख्या रजोस्राव की अवस्था में होती हैं, और इस दौरान मंदिर के गर्भगृह से निकलने वाले रज को अमृत के समान पवित्र माना जाता है। इस अवधि में, मंदिर के गर्भगृह के कपाट चार दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं और पुजारियों द्वारा विशेष पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर के अन्य हिस्सों में हालांकि, दैनिक पूजा-पाठ का क्रम सामान्य रूप से चलता रहता है।

ब्रह्मपुत्र नदी का रंग परिवर्तन (Why Brahmaputra Nadi Changes Colour During Ambubachi Mela))

एक रहस्यमयी परंपरा के अनुसार, मेले के दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का रंग कुछ समय के लिए लाल हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह देवी कामाख्या के रज के कारण होता है।

अंबुबाची मेला से जुड़ी पौराणिक कथा (Ambubachi Mela Katha)

अंबुबाची मेला से जुड़ी पौराणिक कथा भगवान शिव और माता सती से जुड़ी है। कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री सती और उनके पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। अपमानित महसूस कर देवी सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। शोक से व्याकुल भगवान शिव देवी सती के मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करने लगे। ब्रह्मांड के विनाश की आशंका से देवताओं ने भगवान विष्णु से निवेदन किया। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से देवी सती के पार्थिव शरीर को खंड-खंड कर दिया, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर जाकर गिरे। माना जाता है कि देवी सती का योनि भाग कामाख्या पहाड़ी पर गिरा, जहाँ आज माँ कामाख्या देवी के रूप में उनकी पूजा की जाती है।

अंबुबाची मेला का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व (Ambubachi Mela Significance)

अंबुबाची मेला केवल एक धार्मिक उत्सव ही नहीं है, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह मेला निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण माना जाता है:

  • स्त्री शक्ति का प्रतीक: अंबुबाची मेला प्रकृति और स्त्री शक्ति के चक्र का उत्सव है। रजोस्राव की अवधारणा के माध्यम से यह मेला मासिक धर्म को एक प्राकृतिक और पवित्र प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करने का संदेश देता है।
  • देवी कामाख्या की आराधना: यह मेला माँ कामाख्या की आराधना का सबसे बड़ा उत्सव है। लाखों श्रद्धालु इन चार दिनों में देवी के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गुवाहाटी पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में विशेष पूजा-अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिनमें शामिल हैं: पंचामृत स्नान: मेले के चौथे दिन मंदिर के कपाट खुलने से पहले, मंदिर के पुजारी देवी कामाख्या को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराते हैं। महाभोग: पंचामृत स्नान के बाद, देवी को महाभोग अर्पित किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के मिठाइयाँ और खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। निष्क्रमण पूजा: मंदिर के कपाट खुलने के बाद सबसे पहले निष्क्रमण पूजा की जाती है। इस पूजा के दौरान, देवी कामाख्या के मंदिर से निकलने वाली धारा को पवित्र माना जाता है और श्रद्धालु इसकी बूंदों को अपने सिर पर ग्रहण करते हैं।
  • धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन: अंबुबाची मेले के दौरान मंदिर परिसर के आसपास विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसमें भजन-कीर्तन, नृत्य प्रदर्शन, और पारंपरिक नाट्य मंचन शामिल हैं। ये कार्यक्रम न केवल श्रद्धालुओं की आस्था को मजबूत करते हैं, बल्कि असम की समृद्ध संस्कृति का भी प्रदर्शन करते हैं।
  • साधु-संतों और तीर्थयात्रियों का समागम: अंबुबाची मेला देश के विभिन्न भागों और विदेशों से भी साधु-संतों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। यह मेला विभिन्न धर्मिक परंपराओं और आस्थाओं के लोगों को एक साथ लाने का माध्यम बनता है।
  • हस्तशिल्प और खान-पान का मेला: मेले के दौरान मंदिर परिसर के बाहर एक विशाल मेला लगता है। इस मेले में हस्तशिल्प की दुकानें, पारंपरिक वस्त्रों की दुकानें, और असम के विविध व्यंजनों के स्टॉल सजते हैं। श्रद्धालु इन दुकानों से खरीदारी कर न केवल स्मृति चिन्ह प्राप्त करते हैं, बल्कि स्थानीय कलाकारों और उद्यमियों को भी प्रोत्साहित करते हैं।

अंबुबाची मेला का ऐतिहासिक महत्व

अंबुबाची मेला का इतिहास काफी लंबा है। माना जाता है कि यह मेला सदियों से चली आ रही परंपरा है। हालांकि, इस मेले से जुड़े सटीक ऐतिहासिक प्रमाण बहुत कम उपलब्ध हैं। प्राचीन काल के तांत्रिक ग्रंथों और शिलालेखों में इस मेले के संदर्भ मिलते हैं।

17वीं शताब्दी के आसपास असम के राजाओं के शासनकाल में इस मेले का उल्लेख मिलता है। राजाओं द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया और मेले के आयोजन को और भव्य बनाने के लिए कई कदम उठाए गए।

ब्रिटिश राज के दौरान भी अंबुबाची मेले का आयोजन जारी रहा। हालांकि, कुछ समय के लिए इस मेले के कुछ अनुष्ठानों पर पाबंदी लगा दी गई थी। भारतीय स्वतंत्रता के बाद, धार्मिक स्वतंत्रता बहाल होने के साथ ही अंबुबाची मेले का आयोजन पहले की भांति धूमधाम से होने लगा।

उपसंहार

अंबुबाची मेला भारत के सबसे अनोखे और महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों में से एक है। यह मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और स्त्री शक्ति के चक्र का भी उत्सव है। यदि आप धर्म, संस्कृति और परंपरा के संगम का अनुभव करना चाहते हैं, तो अंबुबाची मेला आपके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव हो सकता है।

Leave a Reply