अक्षय नवमी 2025: सनातन धर्म में कार्तिक मास का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व माना गया है। इस मास में दिवाली, गोवर्धन पूजा और छठ जैसे महापर्व मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक शुभ तिथि है कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी, जिसे अक्षय नवमी या आंवला नवमी कहा जाता है। 2025 में यह पवित्र पर्व शुक्रवार, 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह तिथि अत्यंत शुभ और फलदायी होती है।

अक्षय नवमी का धार्मिक महत्व
‘अक्षय’ शब्द का अर्थ होता है – जो कभी नष्ट न हो। मान्यता है कि इस दिन किए गए दान, पूजन और शुभ कर्मों का फल कभी क्षय नहीं होता, अर्थात ये कर्म व्यक्ति के जीवन में स्थायी रूप से पुण्यफल प्रदान करते हैं। यही कारण है कि इसे “अक्षय नवमी” कहा गया है। यह पर्व देवउठनी एकादशी से दो दिन पहले आता है और इसका संबंध सीधे तौर पर भगवान विष्णु से माना गया है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी, इसलिए इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन यदि कोई व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से पूजा-पाठ करता है, तो उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
अक्षय नवमी पर आमले के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है?
अक्षय नवमी को आंवला नवमी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष विधान होता है। आंवले को हिन्दू धर्म में पवित्र और स्वास्थ्यवर्धक फल माना गया है। गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख है कि इस दिन भगवान विष्णु ने आंवले के वृक्ष में वास किया था। इसी कारण इस वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
धार्मिक परंपरा के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन पकाना और उसका सेवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से न केवल अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है बल्कि दीर्घायु और सौभाग्य भी मिलता है। आंवला नवमी के दिन दांपत्य सुख, संतान की उन्नति और धन-समृद्धि की कामना से व्रत रखने की परंपरा भी है।
अक्षय नवमी की पूजा विधि
अक्षय नवमी के दिन प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। उसके बाद आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान होता है। सबसे पहले वृक्ष की जड़ में दूध और शुद्ध जल अर्पित किया जाता है। इसके बाद आंवले के पेड़ को रोली, अक्षत, पुष्प, दीप और फल चढ़ाए जाते हैं।
भक्त वृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। पूजा के पश्चात आंवले के नीचे बैठकर भोजन पकाने और प्रसाद के रूप में ग्रहण करने का विशेष महत्व है। ऐसा करने से घर में सदा सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है।
अक्षय नवमी पर दान का महत्व
सनातन परंपराओं में कहा गया है कि अक्षय नवमी के दिन किया गया दान कभी व्यर्थ नहीं जाता। इस दिन सात प्रकार के अनाज – गेहूं, चावल, मक्का, जौ, तिल, चना और बाजरा का दान अत्यंत शुभ माना गया है। इसके अतिरिक्त जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा करने वाले व्यक्ति के घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती और उसके जीवन में लक्ष्मी का वास बना रहता है।
आंवला दान के लाभ
अक्षय नवमी के दिन आंवले का दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि आंवले का दान करने से धन में वृद्धि, संतान की उन्नति और पारिवारिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। यदि किसी के पास ताजा आंवला उपलब्ध न हो, तो वह आंवले से बनी वस्तुएं जैसे आंवला मुरब्बा, च्यवनप्राश या आंवला पाउडर का दान भी कर सकता है। यह दान भी उतना ही पुण्यफल देने वाला होता है।
अक्षय नवमी से जुड़ी मान्यताएं
अनेक स्थानों पर यह विश्वास किया जाता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष की परिक्रमा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में महिलाएं इस दिन सुखी वैवाहिक जीवन और संतान की दीर्घायु के लिए विशेष व्रत रखती हैं। परिवार के सभी सदस्य मिलकर आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करते हैं, जिसे ‘आंवला भोज’ कहा जाता है।
अक्षय नवमी का पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। आंवले के सेवन से शरीर को अमृत तुल्य लाभ मिलता है, वहीं इस दिन की पूजा से जीवन में स्थायी सुख और समृद्धि आती है। यह दिन हमें सिखाता है कि धर्म, दान और भक्ति के मार्ग पर चलने से ही मनुष्य सच्चे अर्थों में अक्षय पुण्य का अधिकारी बनता है।
अतः 31 अक्टूबर 2025 को जब अक्षय नवमी का शुभ पर्व आए, तो श्रद्धा और भक्ति से आंवले के वृक्ष की पूजा करें, दान-पुण्य करें और अपने जीवन में स्थायी समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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