Akka Mahadevi: अक्का महादेवी भारतीय संत परंपरा की एक ऐसी महान विभूति हैं, जिन्होंने सामाजिक बंधनों, रूढ़ियों और स्त्री पर थोपे गए बंधनों को तोड़ते हुए भक्ति और अध्यात्म की राह पर अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने समाज के सामने यह सिद्ध किया कि आत्मा का संबंध न शरीर से है और न वस्त्रों से। उनका जीवन साहस, भक्ति और आत्मसाक्षात्कार का प्रतीक है। आइए जानते हैं – अक्का महादेवी कौन थीं, उनका जन्म कहाँ हुआ, उनका विवाह किससे हुआ, उन्होंने सभा में वस्त्र क्यों त्यागे, और अंततः उनकी मृत्यु कैसे हुई।

अक्का महादेवी का परिचय
अक्का महादेवी 12वीं शताब्दी की एक प्रसिद्ध वीरशैव संत कवयित्री थीं, जिन्होंने भक्ति आंदोलन के दौरान महिला संतों में एक प्रमुख स्थान बनाया। वे भगवान चन्नमल्लिकार्जुन (शिव के एक रूप) की परम भक्त थीं। उनके भजनों और वचनों में आत्मिक प्रेम, ईश्वर के प्रति समर्पण और सांसारिक मोह से मुक्ति की तीव्र भावना झलकती है।
वे कन्नड़ भाषा की महान कवयित्री मानी जाती हैं। उनके द्वारा लिखे गए वचन (छोटे दार्शनिक पद्य) आज भी दक्षिण भारत में भक्तिकाव्य की अमूल्य धरोहर हैं। उनके लेखन में स्त्री स्वतंत्रता, आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति की पराकाष्ठा का समन्वय देखने को मिलता है।
अक्का महादेवी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि जब मनुष्य अपने भीतर के “ईश्वर तत्व” को पहचान लेता है, तब संसार की सारी बंधनात्मक शक्तियाँ स्वतः समाप्त हो जाती हैं।
अक्का महादेवी का जन्म कहाँ हुआ था
अक्का महादेवी का जन्म 12वीं शताब्दी में कर्नाटक राज्य के उडुतडी (Udutadi) नामक गाँव में हुआ था। यह गाँव आज भी शिवमोग्गा जिले के समीप स्थित है और वहाँ अक्का महादेवी का मंदिर भी बना हुआ है।
उनके पिता का नाम निर्मला शेट्टी और माता का नाम सुमति था। वे आर्थिक रूप से समृद्ध और धार्मिक प्रवृत्ति वाले जैन समुदाय के व्यापारी परिवार से थे।
कहा जाता है कि अक्का महादेवी बचपन से ही अत्यंत तेजस्विनी, सौम्य और ईश्वरभक्त थीं। वे छोटी उम्र से ही शिवभक्ति में डूबी रहतीं और भगवान चन्नमल्लिकार्जुन (शिव का एक स्वरूप, जो श्रीशैलम के मंदिर में पूजित हैं) को ही अपना सर्वस्व मानती थीं।
अक्का महादेवी का बाल्यकाल और ईश्वर-प्रेम
जब अक्का महादेवी छोटी थीं, तभी से उनमें आध्यात्मिक झुकाव देखा गया। वे प्रायः एकांत में बैठकर भगवान शिव का ध्यान करतीं, और अपने मन में उनसे संवाद करतीं। वे कहती थीं —
“मेरे लिए पति, परिवार या समाज नहीं, केवल चन्नमल्लिकार्जुन ही मेरा एकमात्र स्वामी है।”
उनका जीवन पूरी तरह भक्ति के रंग में रंग चुका था। वे ईश्वर को “प्रेमी” और स्वयं को “प्रेमिका” के रूप में देखती थीं — यह रूप उनके वचनों में स्पष्ट झलकता है।
अक्का महादेवी का विवाह किससे हुआ
उनकी सुंदरता, बुद्धिमत्ता और धार्मिक आचरण की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। कहा जाता है कि कौशल देश (आज के कर्नाटक का क्षेत्र) के राजा कौशिक उनके रूप और विद्या से प्रभावित होकर उनसे विवाह करना चाहते थे।
राजा कौशिक एक वीर और संपन्न राजा थे, परंतु वे सांसारिक इच्छाओं से प्रेरित थे। जब उन्होंने अक्का महादेवी के पिता से विवाह का प्रस्ताव रखा, तो परिवार सामाजिक दबाव में आ गया।
महादेवी के माता-पिता ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि यह विवाह समाज की दृष्टि से उचित होगा, परंतु अक्का महादेवी ने यह कहते हुए इंकार कर दिया —
“मैं पहले से ही भगवान चन्नमल्लिकार्जुन की दासी हूँ। मैं किसी और की पत्नी नहीं बन सकती।”
परिवार के दबाव और परिस्थितियों के कारण अंततः उन्होंने राजा कौशिक से विवाह कर लिया, लेकिन यह विवाह उनके आध्यात्मिक जीवन के विपरीत था।
अक्का महादेवी का वैवाहिक जीवन और विद्रोह
विवाह के बाद भी अक्का महादेवी ने सांसारिक जीवन स्वीकार नहीं किया। वे राजा के महल में रहते हुए भी भक्ति में लीन रहतीं और किसी भी प्रकार की शारीरिक या भौतिक सुविधा को महत्व नहीं देतीं।
राजा कौशिक को धीरे-धीरे यह महसूस हुआ कि उनकी पत्नी उनके प्रति उदासीन हैं। उन्होंने उन्हें भक्ति त्यागने और अपने प्रति समर्पित होने के लिए कहा। जब अक्का महादेवी ने मना किया, तो राजा ने उनका अपमान करने का प्रयास किया।
महादेवी ने राजा से स्पष्ट शब्दों में कहा —
“मैंने अपने शरीर को तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि ईश्वर के लिए धारण किया है। तुम मेरे शरीर के स्वामी नहीं, केवल शिव हैं।”
जब राजा ने उनकी भक्ति में बाधा डाली और अपमान किया, तब अक्का महादेवी ने अपने वस्त्र त्याग दिए और महल से निकल पड़ीं।
क्यों अक्का महादेवी ने भरी सभा में अपने कपड़े उतारे थे
अक्का महादेवी का वस्त्र त्यागना भारतीय संत परंपरा में एक अत्यंत प्रतीकात्मक घटना मानी जाती है।
कहा जाता है कि जब राजा कौशिक ने कहा अगर शिव ही तुम्हारा पति है तो मैंने तुम्हें जो भी गहना कपड़े दिए हैं सब वापस करो, तब अक्का महादेवी ने शांत स्वर में कहा —
“यदि मेरे वस्त्र मेरे और मेरे प्रभु के बीच में बाधा बन रहे हैं, तो उनका क्या मूल्य?”
इसके बाद उन्होंने दरबार में अपने वस्त्र उतार दिए और बिना किसी लज्जा के भगवान का नाम लेकर वहाँ से निकल गईं।
यह घटना न केवल उनके आध्यात्मिक साहस का प्रतीक थी, बल्कि स्त्री स्वतंत्रता और आत्मसम्मान की पराकाष्ठा भी थी। उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि आत्मा की पवित्रता वस्त्रों से नहीं, बल्कि विचारों और भक्ति से होती है।
उनकी नग्नता का अर्थ “देह से परे आत्मज्ञान” था — उन्होंने दिखाया कि जब मनुष्य ईश्वर में लीन हो जाता है, तब उसे शरीर और उसके आडंबरों का कोई बोध नहीं रहता।
अक्का महादेवी की कूडला संगम में प्रविष्टि
महादेवी ने वस्त्र त्यागने के बाद अपने जीवन का शेष भाग भ्रमण और भक्ति में बिताया। वे बसवन्ना, अल्लम प्रभु, चन्नबसवेश्वर जैसे वीरशैव संतों के साथ जुड़ीं और अनुभव मंटप नामक संस्था में भाग लेने लगीं।
अनुभव मंटप (कूडला संगम, कर्नाटक में स्थित) उस समय आध्यात्मिक विचार-विमर्श का केंद्र था, जहाँ समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के एकत्र होकर ईश्वर और सत्य पर चर्चा करते थे।
जब अक्का महादेवी वहाँ पहुँचीं, तो कुछ विद्वानों ने उनकी नग्नता को लेकर प्रश्न उठाया। तब अल्लम प्रभु ने कहा —
“वह जो शरीर की पहचान से परे है, उसे वस्त्र की आवश्यकता नहीं।”
उनकी बुद्धिमत्ता, ईश्वरभक्ति और आत्मज्ञान ने सभी को प्रभावित किया, और शीघ्र ही वे उस सभा की सबसे सम्मानित साधिका बन गईं।
अक्का महादेवी की कविताएँ और वचन
अक्का महादेवी ने अपने भावों को “वचन” के रूप में व्यक्त किया। ये वचन कन्नड़ भाषा में हैं और उनमें भक्ति के साथ-साथ आध्यात्मिक प्रेम का भी गहरा दर्शन है।
उनकी प्रसिद्ध पंक्ति है —
“देह वस्त्र हो या न हो, जब आत्मा ईश्वर में विलीन हो जाए, तब शरीर का क्या मूल्य रह जाता है?”
उनकी कविताओं में स्त्री चेतना, आत्मबल और ईश्वर के प्रति निष्कपट प्रेम का अद्भुत संगम है। वे कहती थीं कि प्रेम ही ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सच्चा मार्ग है।
अक्का महादेवी की मृत्यु कैसी हुई
अक्का महादेवी ने अपना जीवन पूर्ण रूप से त्याग और भक्ति में समर्पित कर दिया था। जीवन के अंतिम वर्षों में वे श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश) के जंगलों में चली गईं, जहाँ भगवान चन्नमल्लिकार्जुन का प्रसिद्ध मंदिर है।
वहाँ उन्होंने गुफाओं में तपस्या की और पूर्ण समाधि प्राप्त की। कहा जाता है कि उन्होंने शरीर का परित्याग करते समय ईश्वर में विलीन होकर जीवन्मुक्ति प्राप्त की — अर्थात् शरीर रहते हुए ही आत्मा का ईश्वर से मिलन।
कुछ परंपराओं के अनुसार, वे ध्यानावस्था में अंतर्धान हो गईं — उनका शरीर वहीं विलीन हो गया और केवल दिव्य प्रकाश रह गया। यह घटना उनके परम ज्ञान की सिद्धि मानी जाती है।
अक्का महादेवी का दार्शनिक दृष्टिकोण
अक्का महादेवी ने संसार को “माया” और ईश्वर को “सत्य” माना। उनका मानना था कि जब तक मनुष्य अपने “स्व” को नहीं पहचानता, तब तक वह संसार के मोह में फँसा रहता है।
वे कहती थीं कि सच्ची भक्ति वही है जिसमें व्यक्ति अपने “अहंकार” और “शरीर की पहचान” को छोड़ दे। उनका जीवन “भक्ति के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार” का अद्भुत उदाहरण है।
अक्का महादेवी का योगदान और विरासत
अक्का महादेवी न केवल एक संत कवयित्री थीं, बल्कि उन्होंने स्त्री चेतना को नई दिशा दी। उन्होंने दिखाया कि स्त्री केवल समाज की परिभाषित भूमिकाओं तक सीमित नहीं है — वह आध्यात्मिक और बौद्धिक स्वतंत्रता की भी अधिकारिणी है।
उनकी वाणी ने सदियों तक दक्षिण भारत की महिला संतों और कवयित्रियों को प्रेरित किया। आज भी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में अक्का महादेवी को “शिव की दासी” और “भक्ति की देवी” के रूप में पूजा जाता है।
उनके नाम पर अक्का महादेवी विश्वविद्यालय (कर्नाटक) की स्थापना भी की गई है, जो महिला शिक्षा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
अक्का महादेवी का जीवन अध्यात्म, भक्ति और नारी-सशक्तिकरण का अद्भुत संगम है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि सच्चा धर्म बाह्य आडंबरों में नहीं, बल्कि आत्मा की पवित्रता में निहित है।
उनका वस्त्र-त्याग केवल सामाजिक विद्रोह नहीं था, बल्कि आत्मसाक्षात्कार की घोषणा थी — यह बताने के लिए कि जब आत्मा ईश्वर में लीन हो जाए, तो शरीर की पहचान व्यर्थ हो जाती है।
उनकी मृत्यु संसार से विमुखता नहीं, बल्कि उस अनंत सत्य में विलीनता थी, जिसे उन्होंने जीवनभर खोजा। अक्का महादेवी आज भी भक्ति, प्रेम और स्वतंत्रता की प्रतीक बनी हुई हैं — एक ऐसी स्त्री, जिसने ईश्वर के प्रेम में अपने अस्तित्व को पूर्णतः समर्पित कर दिया।
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