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Ahoi Ashtami 2024 :अहोई अष्टमी 2024 कब है, तिथि, पूजा विधि और महत्व

अहोई अष्टमी, जिसे अहोई माता व्रत के नाम से भी जाना जाता है, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। यह व्रत मुख्य रूप से माताओं द्वारा अपने संतान, खासकर पुत्रों, के दीर्घायु और कल्याण के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं अहोई माता की पूजा-अर्चना करती हैं, जो मातृत्व की शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं। आइए, इस लेख में अहोई अष्टमी 2024 की तिथि, पूजा विधि, महत्व, कथा और व्रत नियमों के बारे में विस्तार से जानें।

Ahoi Ashtami 2024

अहोई अष्टमी 2024 की तिथि और शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami 2024 Date)

अहोई अष्टमी वर्ष 2024 में गुरुवार, 24 अक्टूबर को पड़ रही है. आइए देखें इस दिन शुभ मुहूर्त कौन-से हैं:

  • अष्टमी तिथि का प्रारंभ: 24 अक्टूबर 2024, सुबह 06:16 बजे
  • अष्टमी तिथि का समापन: 25 अक्टूबर 2024, सुबह 05:35 बजे
  • अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:45 बजे से 12:30 बजे तक (पूजा के लिए शुभ मुहूर्त)
  • वृश्चिक लग्न मुहूर्त: शाम 06:13 बजे से 08:00 बजे तक (पूजा के लिए शुभ मुहूर्त)

अहोई माता की पूजा विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi)

अहोई अष्टमी के दिन विधि-विधान से पूजा करने से माता की कृपा प्राप्त होती है और संतान को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. नीचे विस्तार से जानिए अहोई माता की पूजा विधि:

  1. पूजा की तैयारी: सबसे पहले, पूजा के लिए एक साफ स्थान चुनें और चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  2. अहोई माता की प्रतिमा: आप घर में बनी हुई अहोई माता की प्रतिमा का उपयोग कर सकती हैं या फिर बाजार से अहोई माता की प्रतिमा ला सकती हैं। प्रतिमा को स्थापित करके उसका गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
  3. अष्टमी के प्रतीक का निर्माण: अहोई अष्टमी के दिन दीवार पर गेरू से माता पार्वती की तस्वीर बनाई जाती है। इसके साथ ही, उनके सामने सात पुत्रों वाली स्याहू का चित्र भी बनाएं। स्याहू का अर्थ होता है साही का कांटा। माना जाता है कि सात पुत्रों वाली स्याहू अहोई माता का रूप है।
  4. पूजा सामग्री: अब पूजा की सामग्री जैसे चावल, सिंदूर, रोली, मौली, दीपक, अगरबत्ती, कपूर, सुपारी, बताशे, खील आदि को एकत्रित कर लें।
  5. पूजन विधि: इसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन लें। पूजा स्थान पर आसन बिछाकर बैठ जाएं। अब संकल्प लें कि मैं अहोई माता की पूजा पुत्रों की दीर्घायु और मंगल कामना के लिए कर रही हूँ।
  6. अहोई माता का श्रृंगार: अहोई माता की प्रतिमा को कलवा बांधकर, रोली, चंदन और सिंदूर से उनका श्रृंगार करें।
  7. दीप प्रज्वलित करना और आवाहन: अहोई माता के समक्ष दीपक जलाएं और उनका ध्यान करते हुए उन्हें पूजा के लिए आमंत्रित करें।
  8. षोडशोपचार पूजन: अहोई माता को पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह उपचार अर्पित करें।

अहोई माता की कथा (Ahoi Ashtami Katha)

अहोई अष्टमी की पूजा के समय कथा सुनने का विशेष महत्व माना जाता है। आइए अब जानते हैं अहोई माता की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में सातवती नाम की एक धर्मपरायण स्त्री थी। उसके सात पुत्र थे। एक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सातवती के सभी पुत्र नदी में खेलते समय डूबने लगे। यह देखकर सातवती विह्वल हो उठीं। उन्होंने अपने पुत्रों को बचाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। उसी समय उन्हें एक दिव्य ज्योति दिखाई दी। उस ज्योति से निकलकर एक देवी प्रकट हुईं। सातवती ने उनका वंदन किया और अपने पुत्रों को बचाने की विनती की।

देवी ने सातवती को बताया कि वे अहोई माता हैं। उन्होंने सातवती को बताया कि यदि वे उनकी विधि-विधान से पूजा करेंगी तो उनके पुत्रों की रक्षा होगी। सातवती ने पूरे श्रद्धाभाव से अहोई माता की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर अहोई माता ने सातवती के पुत्रों को बचा लिया। तब से, माताएं अपने पुत्रों की रक्षा और दीर्घायु के लिए अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा करती हैं।

अहोई व्रत का महत्व (Ahoi Ashtami Significance)

अहोई अष्टमी का व्रत माताओं और संतानों के बीच प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। आइए देखें अहोई व्रत के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को:

  • संतान की दीर्घायु और कल्याण: अहोई व्रत मुख्य रूप से संतान, खासकर पुत्रों, की दीर्घायु और कल्याण के लिए रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से संतान को किसी भी प्रकार की विपत्ति से बचाया जा सकता है।
  • निःसंतान दम्पत्तियों की मनोकामना पूर्ति: अहोई अष्टमी का व्रत निःसंतान दम्पत्तियों द्वारा भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।
  • मातृत्व का प्रतीक: अहोई अष्टमी का पर्व मातृत्व की भावना का प्रतीक माना जाता है। इस दिन माताएं मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना करती हैं, जो मातृत्व की शक्ति का प्रतीक हैं।
  • सुख-समृद्धि का आशीर्वाद: अहोई व्रत को करने से माता को अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इससे घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है और वैवाहिक जीवन में खुशहाली बनी रहती है।

अहोई व्रत के नियम (Ahoi Ashtami Rules)

अहोई अष्टमी का व्रत रखने से पहले इसके कुछ नियमों को जानना जरूरी है। आइए देखें अहोई व्रत के कुछ महत्वपूर्ण नियम:

  • व्रत रखने वाली महिलाएं: अहोई व्रत केवल हिन्दू धर्म की महिलाएं ही रख सकती हैं।
  • व्रत का प्रारंभ: अहोई अष्टमी का व्रत सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करने के साथ शुरू होता है। सरगी में सात्विक भोजन जैसे फल, मेवे और दूध का सेवन किया जाता है। इसके बाद पूरे दिन व्रत रखा जाता है।
  • निर्जला व्रत: अहोई अष्टमी का व्रत निर्जला रखा जाता है, यानी पूरे दिन पानी का सेवन भी नहीं किया जाता है।
  • पूजा का समय: शाम को स्नान करके पूजा की जाती है। कथा सुनने और पूजा करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।

अहोई अष्टमी पर राशि अनुसार उपाय (Remedies according to zodiac sign on Ahoi Ashtami)

अहोई अष्टमी के दिन आप अपनी राशि के अनुसार कुछ उपाय भी कर सकती हैं। इससे आपको और आपके संतान को अतिरिक्त लाभ मिल सकता है।

  • मेष राशि: चंद्रमा का चौथा गोचर होने से सुख की वृद्धि होगी। आप माता को सिंदूर अवश्य चढ़ाएं।
  • वृष राशि: चंद्रमा का तीसरा गोचर होने के कारण यह संकल्प शक्ति बढ़ाने वाला होगा। भगवान शिव को सफेद चंदन अवश्य अर्पित करें।
  • मिथुन राशि: चंद्रमा का दूसरा गोचर होने के कारण माता को दक्षिणा देने से आपके घर में धन-धान्य की कमी नहीं होगी।
  • कर्क राशि: चंद्रमा का पहला गोचर होने के कारण बेहतर स्वास्थ्य के लिए फल का भोग लगाना चाहिए।
  • सिंह राशि: चंद्रमा का बारहवां गोचर होने के कारण रोग भय होगा। व्रत के दौरान महामृत्युंजय की एक माला का जाप अवश्य करें।
  • कन्या राशि: चंद्रमा का ग्यारहवां गोचर होने के कारण आजीवन लाभ के लिए माता पार्वती को सफेद पुष्प की माला अर्पित करें।
  • तुला राशि: दसवां गोचर होने के कारण कामकाजी महिलाओं को कार्यक्षेत्र में बरकत के लिए यथाशक्ति श्रृंगार सामग्री अर्पित करनी चाहिए।
  • वृश्चिक राशि: नवां गोचर होने के कारण धर्म की वृद्धि के लिए खुद के साथ ही दूसरों को भी कथा सुनाएं।
  • धनु राशि: आठवां गोचर होने के कारण मन में व्याकुलता बनी रहेगी। इस कारण एकाग्रचित्त होकर भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • मकर राशि: सातवां गोचर होने के कारण संतान की शिक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिए माता सरस्वती की पूजा करें।
  • कुंभ राशि: छठा गोचर होने के कारण शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • मीन राशि: पांचवां गोचर होने के लिए माता लक्ष्मी की पूजा करके धन लाभ की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।

ध्यान दें कि उपरोक्त उपाय ज्योतिषीय पर आधारित हैं। आप अपनी राशि के अनुसार किसी ज्योतिषी से सलाह लेकर भी उपाय कर सकती हैं।

उपसंहार

अहोई अष्टमी का पर्व मातृत्व के पवित्र बंधन का उत्सव है। इस दिन माताएं अपने संतानों के सुख-दुख में साथ रहने का संकल्प लेती हैं। अहोई अष्टमी की पूजा करने और व्रत रखने से माता को संतान की दीर्घायु और कल्याण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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