You are currently viewing Adi Shankaracharya Jayanti 2025: आदि शंकराचार्य जयंती कब है? जानिये उनके द्वार किये गये महत्वपूर्ण कार्य

Adi Shankaracharya Jayanti 2025: आदि शंकराचार्य जयंती कब है? जानिये उनके द्वार किये गये महत्वपूर्ण कार्य

प्राचीन भारत के इतिहास में अनेक महान दार्शनिकों का नाम उल्लेखनीय है, जिनमें आदि शंकराचार्य का नाम विशेष रूप से प्रमुख है। वे अपने समय के सबसे प्रतिष्ठित संतों में से एक माने जाते हैं। उनके जन्मदिन को पूरे देश में शंकराचार्य जयंती के रूप में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। उनका जन्म केरल के कलाडी नामक स्थान पर हुआ था, और मात्र 32 वर्ष की आयु में ही उनका निधन हो गया। आदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत दर्शन के सिद्धांतों को अपनाकर हिंदू संस्कृति को उस समय संरक्षित किया, जब इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी। उनके योगदान ने हिंदू धर्म और दर्शन को नई दिशा प्रदान की।

आदि शंकराचार्य
Adi Shankaracharya Jayanti 2025

आदि शंकराचार्य जयंती 2025 में कब मनाई जाएगी?

हिंदू पंचांग के अनुसार, आदि शंकराचार्य जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह शुभ तिथि निम्नलिखित दिन पड़ेगी:

आदि शंकराचार्य जयंतीशुक्रवार, 2 मई 2025

इस दिन आदि शंकराचार्य की जयंती पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उनके द्वारा दिए गए अद्वैत वेदांत के उपदेशों का स्मरण किया जाता है।

आदि शंकराचार्य की जीवन कथा

आदि शंकराचार्य के माता-पिता भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। मान्यता है कि एक दिन भगवान शिव ने उनके पिता को स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। इस पर उन्होंने एक ऐसे पुत्र की कामना की, जो अत्यंत ज्ञानवान और दीर्घायु हो। तब भगवान शिव ने कहा कि संतान या तो सर्वज्ञ होगी या दीर्घायु, दोनों गुण एक साथ संभव नहीं। शंकराचार्य के पिता ने ज्ञानवान संतान का वरदान चुना। भगवान शिव के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम शंकर रखा गया।

शंकराचार्य ने बचपन से ही अद्भुत बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। दुर्भाग्यवश, जब वे मात्र तीन वर्ष के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। उनका मन वैराग्य की ओर झुकने लगा, परंतु उनकी माता इसके लिए तैयार नहीं थीं। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया। इस अवसर का उपयोग करते हुए शंकराचार्य ने अपनी माता से संन्यास की अनुमति मांगी। भयभीत माता ने तुरंत स्वीकृति दे दी, और इसके बाद वे संन्यास धारण कर आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़े।

16 से 32 वर्ष की आयु के बीच उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की और वेदांत के संदेशों का प्रचार किया। उन्होंने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने का कार्य किया और लोगों को शास्त्रों का महत्व समझाया। आदि शंकराचार्य की शिक्षाएं आज भी पूरी दुनिया में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

आदि शंकराचार्य के महान कार्य

आदि शंकराचार्य एक अद्वितीय कवि और महान दार्शनिक थे, जिन्होंने अपने हृदय में परमात्मा के प्रति अपार भक्ति और प्रेम को स्थान दिया। उनकी रचनाओं में ध्यान और भक्ति से परिपूर्ण 72 भजन शामिल हैं। इनमें निर्वाण शतक, सौंदर्य लहरी, मनीषा पंचकम और शिवानंद लहरी प्रमुख हैं।

उन्होंने हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों जैसे भगवद गीता, ब्रह्म सूत्र और 12 प्रमुख उपनिषदों पर 18 भाष्य (टीकाएँ) लिखीं। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को स्पष्ट करने के लिए 23 ग्रंथों की रचना की, जिसमें उन्होंने एक अविभाज्य ब्रह्म (परम सत्य) की व्याख्या की। उनके द्वारा लिखित आत्म बोध, विवेक चूड़ामणि, उपदेश सहस्री और वाक्य वृत्ति जैसे ग्रंथ आज भी ज्ञान के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

आदि शंकराचार्य के प्रेरणादायक उद्धरण

आइए, आदि शंकराचार्य द्वारा दिए गए इन अमूल्य उद्धरणों को अपनाकर उनकी जयंती को सार्थक बनाएं—

  1. “धन, संबंध, मित्रता और यौवन पर अहंकार मत करो। ये सभी पल भर में छिन सकते हैं। इस मायावी संसार को त्यागो और परमात्मा की शरण में जाओ।”
  2. “किसी को मित्र या शत्रु, भाई या संबंधी के रूप में देखने की आवश्यकता नहीं है। मित्रता और शत्रुता के विचारों में अपनी मानसिक ऊर्जा को व्यर्थ न करें। सबके प्रति समान भाव रखते हुए, मिलनसार और संतुलित दृष्टिकोण अपनाएं।”
  3. “यह संसार एक स्वप्न के समान है, जो जागरण तक सत्य प्रतीत होता है।”
  4. “मैं शरीर से भिन्न हूँ, फिर भी मुझे इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह एक ऐसा साधन है जिससे मैं संसार में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता हूँ। यह वह मंदिर है जिसमें शुद्ध आत्मा निवास करती है।”
  5. “मुक्ति प्राप्त करने के लिए बुद्धिमान व्यक्ति को आत्मा और अहंकार के बीच भेद करने की साधना करनी चाहिए।”
  6. “सच्चा आनंद उन्हीं को प्राप्त होता है, जो उसकी खोज में नहीं जाते, बल्कि उसे स्वयं के भीतर अनुभव करते हैं।”
  7. “हर वस्तु अपने मूल स्वरूप की ओर आकर्षित होती है। मैं सदा सुख की इच्छा करता हूँ क्योंकि वह मेरा वास्तविक स्वरूप है। मेरे स्वभाव को अपनाना मेरे लिए कभी कठिन नहीं होता, किंतु दुःख हमेशा बोझिल होता है।”
  8. “जिस प्रकार सीप में चांदी का आभास होता है, उसी प्रकार संसार तब तक वास्तविक प्रतीत होता है जब तक आत्मा के परम सत्य का ज्ञान नहीं हो जाता।”

आदि शंकराचार्य के ये विचार हमें आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं और हमें जीवन की सच्ची राह दिखाते हैं।

ALSO READ:-

Mahabharat: शिखंडी कैसे बना एक स्त्री से पुरुष? क्यों लेना चाहता था वह भीष्म पितामह से बदला?

Leave a Reply