हिंदू पंचांग के अनुसार, 11 मार्च को गोविंद द्वादशी मनाई जाएगी, जो भगवान विष्णु की उपासना के लिए श्रेष्ठ तिथि मानी जाती है। द्वापर युग में, श्रीकृष्ण के अनुरोध पर बालक बर्बरीक ने इसी दिन अपने शीश का दान किया था। यह तिथि धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और श्रद्धालु इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली द्वादशी को “गोविंद द्वादशी” कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष गोविंद द्वादशी 11 मार्च को मनाई जाएगी। द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु की उपासना के लिए विशेष माना जाता है। द्वापर युग में, श्रीकृष्ण के अनुरोध पर, बालक बर्बरीक ने इसी दिन अपने शीश का दान किया था। कलयुग में, बर्बरीक को बाबा खाटूश्याम के रूप में पूजा जाता है। खाटूश्यामजी मंदिर में फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में एक बड़ा मेला आयोजित होता है, जिसमें देश भर से श्रद्धालु आते हैं।
माना जाता है कि खाटूश्यामजी के दर्शन से सभी कष्टों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी दिन पुरी के जगन्नाथ मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर और वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में भी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
गोविंद द्वादशी 2025 तिथि (Govind Dwadashi 2025 Date and Time)
गोविंदा द्वादशी 2025 मंगलवार, 11 मार्च को मनाई जाएगी। द्वादशी तिथि का आरंभ 10 मार्च 2025 को प्रातः 07:45 बजे होगा और समापन 11 मार्च 2025 को प्रातः 08:14 बजे। यह तिथि भगवान विष्णु की उपासना के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है और इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
गोविन्द द्वादशी महत्व (Govind Dwadashi Mahatva)
धार्मिक मान्यता है कि यदि एकादशी का व्रत न रख पाएं तो द्वादशी का व्रत रखने से भी समान फलों की प्राप्ति होती है। गोविंद द्वादशी पर भगवान विष्णु की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और व्याधियों का नाश होता है। वेद और पुराणों के अनुसार, इस द्वादशी का पूजन और व्रत करने से “अतिरात्र याग” नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गोविंद द्वादशी का व्रत रखने से घर-परिवार में धन-धान्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी रखा जाता है। इस व्रत के प्रभाव से मानव जीवन के सभी रोगों का नाश होता है और अंत में वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
गोविन्द द्वादशी पूजा विधि (Govind Dwadashi Puja Vidhi)
गोविन्द द्वादशी पर भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है, इसलिए इसे नरसिंह द्वादशी भी कहा जाता है। इस दिन प्रातःकाल संकल्प के साथ व्रत रखें और षोडशोपचार या पंचोपचार विधि से भगवान विष्णु का पूजन करें। चंदन, अक्षत, तुलसी दल और पुष्प को ‘श्री गोविंद’ और ‘श्री हरि’ बोलते हुए भगवान को अर्पित करें। इसके बाद भगवान को भोग लगाएं और आरती करें। इस दिन व्रतधारी भक्तों को पूर्ण श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। नरसिंह द्वादशी पर विधिपूर्वक पूजन और व्रत करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है।
गोविंद द्वादशी पर भगवान विष्णु मंत्र (Govind Dwadashi Vishnu Mantra)
गोविंद द्वादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। भगवान श्री गोविंद का स्वरूप शांत और आनंदमयी है, और उनका स्मरण करने से भक्तों के जीवन के समस्त संकटों का नाश होता है। गोविंद द्वादशी के अवसर पर भगवान विष्णु का पूजन विशेष महत्व रखता है। इस दिन भक्तजन निम्नलिखित मंत्रों का जाप करते हैं:
- “ॐ नारायणाय नमः”
- “ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥”
- “ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।”
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः”
इन मंत्रों का जाप करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के समस्त कष्टों का नाश होता है। यह मंत्र भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं और गोविंद द्वादशी के दिन इनका उच्चारण अत्यंत लाभकारी होता है।
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