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Sindhara Dooj 2024: सिंधारा दूज 2024 में कब है, जाने तिथि और महत्व

सिंधारा दूज, जिसे कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह त्योहार भगवान यमराज, मृत्यु के देवता, और उनकी बहन यमुना देवी, यमुना नदी की देवी, की पूजा के लिए समर्पित है। माना जाता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने पृथ्वी पर आते हैं। इस अवसर को भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।

Sindhara Dooj 2024

यह लेख सिंधारा दूज 2024 के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, जिसमें तिथि, महत्व, शुभ मुहूर्त और इस त्योहार से जुड़ी खूबसूरत परंपराएं शामिल हैं।

सिंधारा दूज 2024 की तिथि (Sindhara Dooj 2024 Date)

2024 में, सिंधारा दूज 4 अक्टूबर, गुरुवार को पड़ रहा है।

  • द्वितीया तिथि प्रारंभ: 4 अक्टूबर, सुबह 02:58 बजे से
  • द्वितीया तिथि समाप्त: 5 अक्टूबर, शुक्रवार, सुबह 05:31 बजे तक

सिंधारा दूज का धार्मिक महत्व (Sindhara Dooj Importance)

सिंधारा दूज का हिंदू धर्म में गहरा धार्मिक महत्व है। आइए इस त्योहार के विभिन्न पहलुओं पर नज़र डालें:

  • यमराज और यमुना देवी की पूजा: सिंधारा दूज के दिन, भक्त भगवान यमराज और यमुना देवी की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने पृथ्वी लोक पर आते हैं। भक्त यमराज से अकाल मृत्यु से रक्षा और यमुना देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।
  • पितरों का स्मरण: सिंधारा दूज को पितृ पक्ष के समापन के रूप में भी चिह्नित किया जाता है। इस दिन लोग अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं और उनके नाम पर तर्पण करते हैं। तर्पण एक अनुष्ठान है जिसमें जल, तिल और कुश का दान किया जाता है, ऐसा माना जाता है कि इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति में सहायता मिलती है।
  • भाई-बहन का प्रेम: सिंधारा दूज भाई-बहन के प्रेम और स्नेह के बंधन का उत्सव भी है। इस दिन भाई-बहन एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और उनके बीच मंगल कामना करते हैं। कुछ क्षेत्रों में, भाई अपनी बहनों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं, जो उनकी रक्षा का प्रतीक है।
  • नए साल की शुरुआत: भारत के कुछ क्षेत्रों में, सिंधारा दूज को नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। लोग इस दिन नए कपड़े पहनते हैं, अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं और स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं। यह एक नए साल के स्वागत और आने वाले समय के लिए शुभकामनाओं का प्रतीक है।

सिंधारा दूज के लिए शुभ मुहूर्त (Auspicious time for Sindhara Dooj 2024)

2024 में सिंधारा दूज के लिए शुभ मुहूर्त का विवरण इस प्रकार है:

  • यमराज पूजा मुहूर्त: 4 अक्टूबर, सुबह 11:30 बजे से दोपहर 12:20 बजे तक
  • भाई-बहन के लिए शुभ मुहूर्त: 4 अक्टूबर, शाम 06:15 बजे से रात 07:05 बजे तक

सिंधारा दूज से जुड़ी परंपराएं (Traditions related to Sindhara Dooj)

सिंधारा दूज विभिन्न प्रकार की रंगारंग परंपराओं से जुड़ा हुआ है, जो इस त्योहार को जीवंत बनाती हैं। आइए इन परंपराओं पर गौर करें:

  • यमराज की पूजा: सिंधारा दूज के दिन, भक्त विधि-विधान से यमराज की पूजा करते हैं। पूजा की थाली में आम के पत्ते, रोली, मौली, अक्षत, फूल, धूप, दीप और मिठाई रखी जाती है। यमराज को प्रसन्न करने के लिए भक्त उनकी आरती उतारते हैं और उनसे अकाल मृत्यु से रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं। कुछ क्षेत्रों में, लोग यमराज की सवारी, एक भैंसे की मूर्ति भी बनाते हैं।
  • यमुना नदी में स्नान: यमुना नदी के तट पर बसे क्षेत्रों में, सिंधारा दूज के दिन यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। कुछ लोग यमुना देवी की पूजा भी करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
  • दीपदान: शाम के समय, श्रद्धालु यमुना नदी में या घर पर ही दीपदान करते हैं। दीपक में सरसों का तेल और रुई की बत्ती का प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह अनुष्ठान दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करता है और उनके मार्गदर्शन का आह्वान करता है।
  • भाई-बहन का रक्षा सूत्र: कुछ क्षेत्रों में, सिंधारा दूज के दिन भाई अपनी बहनों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं। यह राखी से मिलता-जुलता एक पवित्र धागा होता है, जो बहन की रक्षा का प्रतीक है। भाई-बहन एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और उनके बीच प्रेम और स्नेह का बंधन मजबूत होता है।
  • भोज और उत्सव: सिंधारा दूज के दिन कई घरों में भोज का आयोजन किया जाता है। परिवार के सभी सदस्य एक साथ भोजन करते हैं और इस विशेष अवसर का आनंद लेते हैं। कुछ क्षेत्रों में, लोग नाटक, नृत्य और संगीत जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। यह त्योहार हर्षोल्लास और खुशी का प्रतीक है।

सिंधारा दूज की कहानियां और पौराणिक महत्व

सिंधारा दूज से जुड़ी कई कहानियां और पौराणिक कथाएं हैं, जो इस त्योहार के महत्व को समझने में सहायक होती हैं। आइए इनमें से कुछ लोकप्रिय कथाओं पर चर्चा करें:

  • यम और यमुना की कथा: सबसे प्रचलित कथा यमराज और उनकी बहन यमुना देवी से जुड़ी है। कथा के अनुसार, यमराज को मृत्यु का देवता बनाया गया था, जिससे उन्हें अपने प्रियजनों से भी मिलने का अवसर नहीं मिलता था। यमुना देवी अपने भाई से बहुत प्यार करती थीं और उनसे मिलने के लिए तरसती थीं। उन्होंने यमराज से विनती की कि उन्हें पृथ्वी लोक पर आने की अनुमति दें। यमराज ने अपनी बहन के प्रेम से द्रवित होकर उन्हें द्वितीया तिथि पर पृथ्वी पर आने की अनुमति दे दी। यमुना ने अपने भाई का भव्य स्वागत किया और उन्हें भोजन कराया। उन्होंने यमराज से वादा करने के लिए कहा कि जो कोई भी इस दिन यमुना नदी में स्नान करेगा और उनसे मिलने आएगा, उसे अकाल मृत्यु से बचाया जाएगा। यमराज ने अपनी बहन को वचन दिया और तब से सिंधारा दूज के दिन यमराज अपनी बहन से मिलने पृथ्वी पर आते हैं।
  • भाई दूज की उत्पत्ति : विद्वानों का मानना है कि सिंधारा दूज ही भाई दूज का प्राचीन रूप है। भाई दूज मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है, जबकि सिंधारा दूज मुख्य रूप से पश्चिम भारत में मनाया जाता है। दोनों त्योहारों में भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का जश्न मनाया जाता है, हालांकि कुछ भिन्न परंपराओं के साथ।

उपसंहार

सिंधारा दूज का त्योहार भाई-बहन के प्रेम, पितरों के प्रति सम्मान और आस्था, और यमराज और यमुना देवी के प्रति भक्ति का प्रतीक है। यह एक ऐसा अवसर है जो परिवारों को एक साथ लाता है और उनके बीच के बंधन को मजबूत करता है।

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