हिंदू धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है, और इस माह में भगवान शालिग्राम तथा माता तुलसी के विवाह का आयोजन धूमधाम से किया जाता है। यह विवाह जीवन के कष्टों को दूर करने और परिवार में सुख-शांति लाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। तुलसी विवाह का आयोजन कुछ लोग देवउठनी एकादशी के दिन करते हैं, जबकि कुछ लोग द्वादशी के दिन। इस वर्ष, जो लोग एकादशी के दिन तुलसी विवाह करेंगे, वे 12 नवंबर को इसे संपन्न करेंगे, जबकि द्वादशी के दिन यह 13 नवंबर को मनाया जाएगा।
तुलसी विवाह की तिथि और समय
पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 12 नवंबर को शाम 4:04 बजे प्रारंभ होगी और 13 नवंबर को दोपहर 1:01 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, उदया तिथि के अनुसार तुलसी विवाह का आयोजन 13 नवंबर, बुधवार को करना शुभ माना गया है। हालांकि, कुछ भक्त 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर ही तुलसी विवाह का आयोजन करेंगे।
तुलसी विवाह की सामग्री
तुलसी विवाह के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
तुलसी का पौधा
भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम जी का चित्र
लाल वस्त्र
पूजा की चौकी
सुहाग की सामग्री (जैसे – बिछुए, सिंदूर, बिंदी, चुनरी, मेहंदी)
फल और सब्जियां (जैसे मूली, शकरकंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर, सीताफल, अमरुद)
केले के पत्ते, हल्दी की गांठ, नारियल, कपूर, धूप, और चंदन
तुलसी विवाह की पूजा विधि
हिंदू धर्म में तुलसी विवाह को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। इस अवसर पर तुलसी के पौधे का विवाह भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम पत्थर से करवाया जाता है। पूजा के लिए शाम का समय शुभ माना जाता है, और इस दिन परिवार के सभी सदस्य नये वस्त्र पहनकर विवाह में शामिल होते हैं।
तुलसी विवाह के लिए पहले तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप बनाया जाता है और इसे सजाया जाता है। इसके बाद तुलसी पर लाल चुनरी और सुहाग की सामग्री अर्पित की जाती है। गमले में शालिग्राम जी को रखकर विवाह की रस्में शुरू होती हैं। विवाह के दौरान तुलसी माता और शालिग्राम जी को सभी विधियों के साथ सात फेरे दिलाए जाते हैं, और विवाह के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। ध्यान रहे कि शालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ाए जाते हैं, बल्कि उनकी जगह तिल चढ़ाए जाते हैं, जो शुभ माने जाते हैं। विवाह की सभी रस्में पूर्ण होने के बाद सभी में प्रसाद का वितरण किया जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व
हिंदू धर्म में तुलसी को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है, और यह पवित्रता और सुख-समृद्धि का प्रतीक है। भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है, इस कारण तुलसी और शालिग्राम का विवाह पवित्र और शुभ अनुष्ठान माना गया है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह से सभी पापों का नाश होता है, और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
तुलसी विवाह से न केवल आध्यात्मिक विकास होता है, बल्कि यह गृहस्थ जीवन में भी संतुलन लाता है। तुलसी की पूजा से मन में शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह मान्यता है कि तुलसी विवाह से जीवन के कष्ट दूर होते हैं, और पति-पत्नी के बीच झगड़े भी समाप्त हो जाते हैं। इस प्रकार, तुलसी विवाह जीवन में सुख और शांति लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
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