दशहरा और करवा चौथ जैसे प्रमुख त्योहारों के बाद अब सबकी नज़रें दिवाली और छठ पूजा पर हैं। हालांकि, दिवाली की तिथि 31 अक्टूबर को निश्चित की जा चुकी है, लेकिन लोक आस्था का महापर्व छठ कब मनाया जाएगा, इसे लेकर अब भी लोगों में असमंजस बना हुआ है। इस लेख में हम छठ पूजा की तिथियों, पूजा विधि, और शुभ मुहूर्त की जानकारी देंगे, ताकि आप सही समय पर इस पावन पर्व को मना सकें।
छठ पूजा 2024: कब है महापर्व छठ? (Chhath Puja 2024 Date)
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक मनाई जाती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें सूर्य देव की पूजा और उपासना की जाती है। छठ पूजा की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, और इसका समापन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होता है। इस वर्ष 2024 में, छठ पूजा की तिथियां इस प्रकार हैं:
- नहाय-खाय: 5 नवंबर 2024
- खरना: 6 नवंबर 2024
- संध्याकाल का अर्घ्य (डूबते सूर्य को): 7 नवंबर 2024
- सबेरे का अर्घ्य (उगते सूर्य को): 8 नवंबर 2024
छठ पूजा की विधि और महत्वपूर्ण तिथियां (Chhath Puja 2024 Nahaye-Khaaye Date)
1. नहाय-खाय (05 नवंबर 2024):
छठ पूजा की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रती पवित्र नदियों जैसे गंगा में स्नान करते हैं और इसके बाद शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन में आमतौर पर चावल, दाल और लौकी की सब्जी बनाई जाती है, जो पूरी तरह से सात्विक और बिना लहसुन-प्याज के होती है। नहाय-खाय छठ पर्व का पहला दिन होता है, जिसमें व्रती अपने शरीर और मन को शुद्ध करते हैं और सूर्य देव की आराधना करते हैं।
2. खरना (06 नवंबर 2024):
दूसरे दिन, जिसे ‘खरना’ के नाम से जाना जाता है, व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं। इस दिन बिना जल के उपवास रखने के बाद शाम को व्रती स्नान करके छठी मैया और सूर्य देव की पूजा करते हैं। पूजा के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे ‘खरना प्रसाद’ कहा जाता है। इसमें गुड़ की खीर, रोटी और अन्य सादा भोजन होता है। इसके बाद, व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं, जो छठ पूजा का प्रमुख हिस्सा है। खरना पूजा के बाद शुरू होने वाला यह उपवास व्रती के शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण का प्रतीक होता है।
3. संध्याकाल का अर्घ्य (07 नवंबर 2024):
छठ पूजा का तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस दिन व्रती संध्या के समय नदी या तालाब के किनारे एकत्र होते हैं और सूर्यास्त के समय सूर्य देव को जल अर्पित करते हैं। अर्घ्य देने का यह समय बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का यह अनुष्ठान इस बात का प्रतीक है कि जीवन में सूर्यास्त यानी अंत के समय का भी उतना ही महत्व होता है जितना कि सूर्योदय का। इस दिन व्रती के परिवारजन और आसपास के लोग भी साथ होते हैं और इस पवित्र अनुष्ठान में भाग लेते हैं।
4. उगते सूर्य को अर्घ्य (08 नवंबर 2024):
छठ पूजा का अंतिम और चौथा दिन तब होता है जब व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस दिन सुबह-सुबह व्रती नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होते हैं और सूर्य देव के उदय होने पर उन्हें जल चढ़ाते हैं। उगते सूर्य को अर्घ्य देने का यह अनुष्ठान इस बात का प्रतीक है कि जीवन में नए आरंभ और आशा का महत्व है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पूजा का समापन होता है। व्रती इस समय अपने 36 घंटे के निर्जला उपवास को समाप्त करते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं।
छठ पूजा के अनुष्ठान और नियम
छठ पूजा में व्रत रखने वाले लोगों को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। व्रती न केवल शारीरिक शुद्धि का ध्यान रखते हैं, बल्कि मन, वचन और कर्म से भी पूरी तरह से शुद्ध रहते हैं। पूजा के दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाता है:
- व्रती सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं और लहसुन-प्याज का सेवन नहीं करते हैं।
- पूजा के दौरान शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
- प्रसाद के रूप में ठेकुआ, गुड़ की खीर, चावल और फल चढ़ाए जाते हैं।
- व्रती और परिवारजन साफ कपड़े पहनते हैं और विशेष ध्यान दिया जाता है कि किसी प्रकार की अपवित्रता पूजा स्थल के आसपास न हो।
- 36 घंटे का निर्जला उपवास व्रती की सहनशीलता और श्रद्धा का प्रतीक होता है।
छठ पूजा का महत्व (Chhath Puja Mahatva)
छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का पर्व है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक महत्व भी रखता है। सूर्य देव को जीवनदाता और उर्जा का स्रोत माना जाता है, और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए छठ पूजा की जाती है। इस पर्व के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करता है।
छठ पूजा न केवल बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में बसे भारतीय समुदाय के लोगों द्वारा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। इस पर्व का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें व्रती अपने परिवार, समाज और प्रकृति के साथ एक विशेष संबंध स्थापित करते हैं।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 7 नवंबर को रात 12:41 बजे शुरू होगी और 8 नवंबर को रात 12:34 बजे समाप्त होगी। इस अवधि के दौरान, संध्याकाल और सुबह के अर्घ्य का समय अत्यधिक शुभ माना जाता है।
निष्कर्ष
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अनूठा पर्व है, जो न केवल सूर्य देव की उपासना का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति, परिवार और समाज के साथ सामंजस्य स्थापित करने का भी पर्व है। यह पर्व जीवन में अनुशासन, संयम और श्रद्धा की महत्ता को समझने का एक अवसर है। इसलिए, इस वर्ष छठ पूजा के शुभ मुहूर्त और विधि का पालन करके आप अपनी आस्था को मजबूत बना सकते हैं और अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।
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