By Neha Pandey
भगवद्गीता के श्लोक 2.12 में आत्मा की शाश्वतता और अमरता का संदेश। श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक आत्मा के शाश्वत और अमर अस्तित्व को स्पष्ट करता है। यह समझने के लिए आइए इस श्लोक का अर्थ और भावार्थ जानें।
श्लोक 2.12: "न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः | न चैव नभविष्यामः सर्वे वयमतः परम् || १२ ||
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा न कभी नष्ट हुई है, न होगी। हम सभी का अस्तित्व भूत, वर्तमान और भविष्य में हमेशा रहेगा।
श्लोक 2.12
शाश्वत अस्तित्व आत्मा का नाश कभी नहीं होता। यह सदैव के लिए शाश्वत है और इसका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होता।
वेदों और उपनिषदों का समर्थन वेदों और उपनिषदों में भी आत्मा की शाश्वतता को स्वीकार किया गया है। आत्मा का अस्तित्व सदा के लिए है।
मायावादी सिद्धांत का खंडन भगवान श्रीकृष्ण ने मायावादी सिद्धांत को खारिज करते हुए कहा कि आत्मा का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होता और यह शाश्वत है।
भौतिक और आध्यात्मिक अस्तित्व हमारा अस्तित्व न केवल भौतिक रूप से बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी शाश्वत है। यह हमें जीवन के गहरे अर्थ को समझने में मदद करता है।
भगवद्गीता का ज्ञान शाश्वत और सार्वभौमिक है। यह जीवन के रहस्यों को समझने और आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है।
मुख्य बिंदु – आत्मा अजर-अमर है – मायावादी सिद्धांत का खंडन – गीता का शाश्वत ज्ञानcosts low.
निष्कर्ष भगवान श्रीकृष्ण का यह संदेश हमें आत्मा की शाश्वतता को समझने और जीवन में सच्ची शांति पाने की प्रेरणा देता है।
आत्मा का शाश्वत स्वरूप: परिवर्तनशील शरीर