Buddha Purnima 2025 | बुद्ध पूर्णिमा 2025 तिथि | पूजा विधि, पौराणिक कथा और महत्व

Last Upadted: 10 May 2025

Buddha Purnima 2025 : बुद्ध पूर्णिमा, जिसे वैशाख पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की त्रिवेणी स्मरण का पर्व है। इस दिन बौद्ध अनुयायी न केवल भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को याद करते हैं, बल्कि शांति, प्रेम और करुणा के मार्ग पर चलने का संकल्प भी लेते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा
Buddha Purnima 2025 Date

बुद्ध पूर्णिमा 2025: जानिए शुभ मुहूर्त और खास योग

Buddha Purnima 2025 Date: वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा का पर्व 12 मई 2025, सोमवार को मनाया जाएगा। वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 11 मई की शाम 08:01 बजे होगी और यह तिथि 12 मई की रात 10:25 बजे तक प्रभावी रहेगी। चूंकि हिन्दू धर्म में तिथि का निर्धारण सूर्योदय के आधार पर होता है, इसलिए इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा 12 मई को मनाई जाएगी। इस दिन चंद्रमा का उदय शाम 06:57 बजे होगा।

बुद्ध पूर्णिमा के विशेष योग

इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा पर तीन महत्वपूर्ण योगों का संयोग बन रहा है – वरीयान योग, रवि योग, और भद्रावास

  • वरीयान योग पूरी रात बना रहेगा।
  • रवि योग सुबह 05:32 से 06:17 बजे तक प्रभावी रहेगा।
  • भद्रावास सुबह 09:14 बजे तक रहेगा।

बुद्ध पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा (Buddha Purnima Katha)

बुद्ध पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा भगवान गौतम बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं – जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण – के इर्द-गिर्द घूमती है।

  • जन्म: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल में राजा शुद्धोधन और रानी मायादेवी के पुत्र के रूप में हुआ था। जन्म के समय विभिन्न प्रकार के अलौकिक संकेत देखने को मिले थे। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह शिशु या तो एक महान सम्राट बनेगा या फिर आध्यात्मिक जगत का मार्गदर्शक बनेगा।
  • ज्ञान प्राप्ति: राजकुमार सिद्धार्थ (बाद में गौतम बुद्ध) को राजसी सुखों से घिरा हुआ जीवन व्यतीत करना था। किंतु, एक दिन उन्हें वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु का दर्शन हुआ, जिससे उन्हें जीवन की क्षणभंगुरता का बोध हुआ। इन कष्टों से मुक्ति का मार्ग खोजने के लिए उन्होंने वैभवपूर्ण जीवन त्याग दिया और ज्ञान प्राप्ति की खोज में निकल पड़े। कई वर्षों की कठिन साधना के बाद, 35 वर्ष की आयु में बोधगया के बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। तब से उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से जाना गया।
  • महापरिनिर्वाण: बुद्ध के रूप में ज्ञान प्राप्ति के बाद, भगवान बुद्ध ने अपना शेष जीवन चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक मार्ग का उपदेश देने में व्यतीत किया। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को दुःखों से मुक्ति का मार्ग बताया। 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर, उत्तर प्रदेश में साल वृक्ष के नीचे उन्हें महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ, अर्थात उनका चक्र का अंत हुआ।

बुद्ध पूर्णिमा की पूजा विधि (Buddha Purnima Puja Vidhi 2025)

बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध अनुयायी विभिन्न अनुष्ठानों और पूजा-पाठ के माध्यम से भगवान बुद्ध के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यद्यपि विभिन्न बौद्ध संप्रदायों में पूजा विधि में थोड़ा अंतर हो सकता है, किंतु मूल भावना समान ही रहती है।

  • स्नान और श्रद्धा अर्पण: बुद्ध पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई करके भगवान बुद्ध की प्रतिमा या मूर्ति को स्थापित करना चाहिए। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, जल) से भगवान बुद्ध को स्नान कराकर उन्हें नए वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
  • दीपदान, धूप और पुष्पांजलि: पूजा स्थल को सुगंधित बनाने के लिए धूप जलाया जाता है। भगवान बुद्ध के समक्ष घी या तेल का दीप जलाकर उनकी आरती की जाती है।
  • पुष्पांजलि: साथ ही, विभिन्न प्रकार के सुगंधित पुष्प अर्पित किए जाते हैं। फूलों का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वे ताजे और खिले हुए हों।
  • मंत्र जप और ध्यान: बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के विभिन्न मंत्रों का जाप किया जाता है। प्रमुख रूप से “बुद्धम शरणं गच्छामि” (मैं बुद्ध की शरण में जाता हूं), “धम्मं शरणं गच्छामि” (मैं धर्म की शरण में जाता हूं), और “संगं शरणं गच्छामि” (मैं संघ की शरण में जाता हूं) जैसे मंत्रों का जाप किया जाता है। इसके अलावा, शांतिपूर्ण वातावरण में बैठकर ध्यान करने से भी मन को शांति मिलती है और बुद्ध के उपदेशों को आत्मसात करने में सहायता मिलती है।
  • दान का महत्व: बुद्ध पूर्णिमा के दिन दान का विशेष महत्व होता है। जरूरतमंद लोगों को भोजन, वस्त्र या अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करना पुण्यदायक माना जाता है। साथ ही, भिक्षुओं को भोजन दान देने की भी परंपरा है।
  • बौद्ध धर्मग्रंथों का पाठ: कुछ बौद्ध अनुयायी इस दिन धर्मग्रंथों जैसे धम्मपद, मज्झिमनिकाय आदि का पाठ करते हैं। इन धर्मग्रंथों में भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह होता है, जिन्हें पढ़ने से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व (Buddha Purnima Mahatva)

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व है।

  • ज्ञान और करुणा का प्रतीक: बुद्ध पूर्णिमा ज्ञान और करुणा का प्रतीक है। भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ करुणा का भाव भी आवश्यक है।
  • अहिंसा का संदेश: बुद्ध पूर्णिमा अहिंसा का संदेश देती है। भगवान बुद्ध ने अपने उपदेशों में अहिंसा को सर्वोच्च धर्म बताया है। उन्होंने सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा का भाव रखने का उपदेश दिया है।
  • मोक्ष का मार्ग: बुद्ध पूर्णिमा हमें मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती है। भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्यों और अष्टांगिक मार्ग का उपदेश देकर दुःखों से मुक्ति का मार्ग बताया है।
  • समाजिक समरसता: बुद्ध पूर्णिमा समाजिक समरसता का संदेश देती है। भगवान बुद्ध ने जाति, वर्ण, लिंग आदि के भेदभाव को नकारते हुए सभी मनुष्यों को समान माना है। उन्होंने अपने उपदेशों में सभी प्राणियों के कल्याण की बात की है।

ALSO READ:-

Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 13 Shloka 13 | गीता अध्याय 3 श्लोक 13 अर्थ सहित | यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः…..

Leave a Comment