Navratri 4th Day 2025|नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के किस रूप की होती है पूजा| जाने प्रिय भोग,मंत्र और चौथे दिन की पूजा विधि….

Last Updated: 24 September 2025

Shardiya Navratri 4th Day 2025: नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति की उपासना का पावन अवसर है, जो पूरे भारत में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस उत्सव का प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक विशेष स्वरूप की आराधना के लिए समर्पित है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा की जाती है, जिन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति उनकी दिव्य हँसी से हुई थी, इसलिए उन्हें ‘कूष्माण्डा’ कहा गया। वे समस्त सृष्टि की जननी हैं और शक्ति का स्रोत भी। इस दिन भक्त विशेष नियमों और श्रद्धा के साथ उनकी पूजा करके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

नवरात्रि
Shardiya Navratri 4th Day 2025

नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के किस रूप की होती है पूजा?

नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माँ कूष्माण्डा की पूजा होती है। उनका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – “कू” का अर्थ है ‘थोड़ा’, “उष्म” का अर्थ है ‘ऊर्जा’ या ‘उष्णता’, और “अंड” का अर्थ है ‘ब्रह्माण्ड’। अर्थात् वह देवी जिनकी हल्की-सी मुस्कान और ऊर्जा से समस्त ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई, वे ही माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।

माँ कूष्माण्डा का स्वरूप

माँ कूष्माण्डा देवी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है। उनके आठ हाथ हैं, जिनमें कमल, धनुष, बाण, अमृत कलश, चक्र, गदा, जपमाला और कमंडल धारण किए हुए हैं। वे सिंह की सवारी करती हैं, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है। उनका मुखमंडल सूर्य के समान तेजस्वी है और उनकी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आलोकित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब सृष्टि की उत्पत्ति नहीं हुई थी और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब माँ कूष्माण्डा ने अपनी रहस्यमयी मुस्कान से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए उन्हें सृष्टि की आदिशक्ति भी माना जाता है।

नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा को कौन सा भोग अर्पित करें?

माँ कूष्माण्डा को शाकाहारी और सात्विक भोजन अत्यंत प्रिय है। विशेष रूप से उन्हें मालपुआ का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त भक्तजन सफेद मक्खन, मिश्री और लौकी से बने पकवान भी उन्हें चढ़ाते हैं। मालपुआ का भोग अर्पित करने से बुद्धि और विवेक की वृद्धि होती है और जीवन में मधुरता आती है। साथ ही यह माना जाता है कि इस भोग से साधक को आध्यात्मिक ऊँचाई प्राप्त होती है और माँ कूष्माण्डा की विशेष कृपा उस पर बनी रहती है।

माँ कूष्मांडा को कौन सा रंग प्रिय है और क्यों?

माँ कूष्माण्डा को नारंगी (केशरी) रंग अत्यंत प्रिय है। यह रंग शक्ति, उत्साह और उर्जा का प्रतीक माना जाता है। नारंगी रंग में दिव्यता और सकारात्मकता का अद्भुत संगम है, जो साधक के जीवन से अज्ञान और अंधकार को दूर करके ज्ञान और प्रकाश का संचार करता है। भक्तजन नवरात्रि के चौथे दिन नारंगी वस्त्र धारण करके पूजा करते हैं। इस रंग को धारण करने से आत्मविश्वास और साहस की वृद्धि होती है और व्यक्ति का मन स्फूर्त और प्रसन्न रहता है। धार्मिक मान्यता है कि नारंगी रंग माँ कूष्माण्डा की ऊर्जा से सीधा जुड़ा है, इसलिए इस रंग को धारण करने से साधक को उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

नवरात्रि
Maa Kushmanda Image

माँ कूष्माण्डा की नवरात्रि की पूजा विधि

नवरात्रि के चौथे दिन सुबह-सुबह स्नान करके स्वच्छ और नारंगी वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा स्थल को साफ करके वहाँ माँ कूष्माण्डा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करना चाहिए। कलश स्थापना करके माँ की विधिवत पूजा आरंभ की जाती है। सबसे पहले गणेश, विष्णु और अन्य देवताओं का आह्वान किया जाता है, फिर माँ कूष्माण्डा की पूजा होती है। उन्हें नारंगी फूल, मालपुआ, फल और मिश्री का भोग अर्पित किया जाता है। पूजा के समय शुद्ध घी का दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

भक्तजन माँ को अक्षत, रोली, सिंदूर, पुष्प, चंदन और वस्त्र अर्पित करते हैं। पूजा के अंत में कूष्माण्डा स्तोत्र या उनके मंत्रों का जप करने से माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

माँ कूष्माण्डा पूजा का महत्व

माँ कूष्माण्डा की पूजा से साधक के जीवन में नई ऊर्जा और प्रकाश का संचार होता है। उनकी कृपा से भक्त को रोग, शोक और भय से मुक्ति मिलती है। वे आरोग्य, सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान देती हैं। माँ कूष्माण्डा की उपासना से साधक की आत्मिक शक्तियाँ जागृत होती हैं और उसे आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त माँ की सच्चे मन से पूजा करता है, उसके जीवन में कभी निराशा नहीं आती और उसके सारे कार्य सफल होते हैं। माँ कूष्माण्डा सूर्य लोक की अधिष्ठात्री देवी भी मानी जाती हैं, इसलिए उनकी आराधना से साधक का जीवन प्रकाशमय और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है।

माँ कूष्माण्डा के मंत्र और श्लोक

माँ कूष्माण्डा बीज मंत्र
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै नमः।”

यह मंत्र माँ कूष्माण्डा को प्रसन्न करने वाला है और इसके जप से साधक के जीवन में ऊर्जा, शांति और समृद्धि आती है।

माँ कूष्माण्डा ध्यान मंत्र
“वन्दे वामनकारुण्डं सूरीमण्डलमध्यगाम्।
कूष्माण्डं त्रिनेत्रां च सर्वाभीष्टफलप्रदाम्॥”

इस मंत्र का ध्यान करके भक्त माँ का स्मरण करता है और उनसे मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करता है।

माँ कूष्माण्डा श्लोक
“सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥”

इस श्लोक का पाठ करने से माँ की कृपा साधक पर बनी रहती है और उसके जीवन में शुभता आती है।

नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्माण्डा की आराधना के लिए समर्पित है। वे ब्रह्माण्ड की सृष्टिकर्त्री और ऊर्जा की स्रोत मानी जाती हैं। इस दिन नारंगी रंग धारण करके, मालपुए का भोग अर्पित करके और विधिपूर्वक मंत्रों के साथ माँ की पूजा करने से जीवन में सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है। उनकी कृपा से साधक के जीवन से सभी विघ्न दूर होते हैं और उसे आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है।

माँ कूष्माण्डा की पूजा मात्र धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह साधना का वह मार्ग है जो व्यक्ति को आत्मबल, सकारात्मक ऊर्जा और ईश्वरीय कृपा से परिपूर्ण करता है। इस प्रकार नवरात्रि का चौथा दिन भक्तों के लिए एक ऐसा अवसर है जब वे अपनी साधना और भक्ति से माँ की दिव्य शक्ति को अनुभव कर सकते हैं।

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