Kartik Snan 2025| कार्तिक स्नान से जुड़ी क्या है पौराणिक कथा | साथ ही जाने शास्त्रों के अनुसार कार्तिक स्नान के नियम

Last Updated: 07 October 2025

Kartik Snan 2025: कार्तिक मास व्रत कथा के छठवें अध्याय में यह उल्लेख मिलता है कि जब-जब भगवान विष्णु ने अपने पवित्र चरण पृथ्वी पर रखे, तब-तब उन स्थलों पर वेद, यज्ञ, ऋषि और समस्त देवगण उनकी रक्षा के लिए उपस्थित हो गए। इस अध्याय में यह भी कहा गया है कि कार्तिक मास के दौरान कुछ विशेष तिथियों— जैसे सप्तमी, अमावस्या, नवमी, त्रयोदशी, द्वितीया और दशमी—पर आंवले और तिल का स्नान वर्जित माना गया है। छठे अध्याय में विस्तारपूर्वक इन नियमों और उनकी पौराणिक महत्ता का वर्णन किया गया है।

कार्तिक
Kartik Snan Katha

कार्तिक स्नान की कथा

नारद जी ने कहा कि जब रात्रि का अंतिम प्रहर शेष रह जाए, उस समय मनुष्य को चाहिए कि तिल, कुश, अक्षत, चंदन और अन्य पूजन सामग्री लेकर शुद्ध होकर किसी जलाशय की ओर प्रस्थान करे। शास्त्रों में यह बताया गया है कि नहर में स्नान करने की अपेक्षा झरने में स्नान का फल दस गुना अधिक होता है, झरने से भी दस गुना श्रेष्ठ फल नदी में स्नान से प्राप्त होता है, और नदी से भी दस गुना अधिक फल संगम पर स्नान करने से मिलता है। इतना ही नहीं, तीर्थस्थल पर स्नान करने से इन सबका भी दूना फल प्राप्त होता है।

स्नान आरंभ करने से पहले भगवान श्रीविष्णु का ध्यान करते हुए स्नान का संकल्प लेना आवश्यक माना गया है। तत्पश्चात तीर्थ में स्थित देवताओं को क्रमशः अर्घ्य, पाद्य और आचमनीय आदि अर्पित करना चाहिए। अर्घ्य अर्पण करते समय यह भाव प्रकट करना चाहिए – “हे कमलनयन भगवान! आपको प्रणाम है। हे क्षीरसागर में शयन करने वाले प्रभु! आपको वंदन है। हे हृषीकेश! आपके चरणों में मेरा प्रणाम है। कृपया मेरे द्वारा अर्पित इस अर्घ्य को स्वीकार करें।”

इसके अतिरिक्त यह भी वर्णित है कि जब भगवान विष्णु बैकुण्ठ, प्रयाग और बदरिकाश्रम जैसे पवित्र स्थलों पर गए, तब उन्होंने तीन प्रकार से अपने चरणों का स्पर्श कर उन स्थानों को पवित्र और तीर्थमय बना दिया।

इस प्रकार वर्णन मिलता है कि जहाँ-जहाँ भगवान श्रीविष्णु ने अपने दिव्य चरण रखे, वहाँ वेद, यज्ञ, ऋषिगण और समस्त देवता उनकी रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं। भक्त प्रार्थना करता है – “हे जनार्दन! हे दामोदर! हे देवेश! आपकी कृपा प्राप्त करने के लिए मैं कार्तिक मास में प्रातःकाल शास्त्रोक्त विधि से स्नान करूँगा। हे दामोदर! मैं आपके चरणों का ध्यान करके और आपको प्रणाम अर्पित करते हुए इस पावन जल में स्नान करने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। आप कृपालु होकर मेरे समस्त पापों का नाश करें।”

आगे यह भी कहा गया है – “हे श्रीहरे! मैं इस कार्तिक मास में व्रत धारण करके और विधिपूर्वक स्नान कर आपको अर्घ्य अर्पित कर रहा हूँ। आप इसे राधिका जी के सहित स्वीकार करें। हे श्रीकृष्ण! हे महान असुरों का संहार करने वाले परब्रह्म! हे पापनाशक प्रभु! इस कार्तिक मास में नित्य और नैमित्तिक कर्मों के अनुष्ठान के साथ मैं जो अर्घ्य अर्पण कर रहा हूँ, कृपया उसे स्वीकार करें।”

कार्तिक स्नान का व्रत धारण करने वाला साधक जब प्रातः स्नान के लिए जाए, तो सबसे पहले भागीरथी गंगा, भगवान विष्णु, भगवान शंकर और सूर्यदेव का ध्यान करके पवित्र भाव से जल में प्रवेश करे। शास्त्रों में कहा गया है कि व्रती को नाभि तक जल में खड़ा होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थजन स्नान से पूर्व शरीर पर तेल और आंवले का चूर्ण लगाएँ, वहीं विधवा स्त्रियाँ और यती तुलसी के मूल की मिट्टी का लेप करके स्नान करें। विशेष तिथियों जैसे सप्तमी, अमावस्या, नवमी, त्रयोदशी, द्वितीया और दशमी के दिन आंवले और तिल का स्नान निषिद्ध बताया गया है।

स्नान की प्रक्रिया में सबसे पहले बाह्य शुद्धि हेतु मलस्नान किया जाता है, उसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ पुनः आंतरिक शुद्धि के लिए मंत्रस्नान करना आवश्यक माना गया है। स्त्रियाँ और शूद्र वेदों के मंत्रों का प्रयोग स्नान के समय न करें, बल्कि उन्हें पौराणिक विधि से स्नान करना चाहिए। स्नान के दौरान यह मंत्रोच्चार करना चाहिए – “जिस भगवान विष्णु ने देवताओं के कार्य सिद्ध करने के लिए तीन रूप धारण किए थे, वे ही पापों का नाश करने वाले भगवान विष्णु अपनी कृपा से मुझे पवित्र करें।”

शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि कार्तिक व्रत धारण करने वालों की रक्षा स्वयं भगवान विष्णु की आज्ञा से इन्द्र सहित सभी देवगण करते हैं। इसलिए व्रती यह भाव प्रकट करे कि समस्त वेदों के रहस्य और मंत्र, यज्ञ, कश्यप आदि ऋषिगण, इन्द्र सहित सभी देवता मुझे पवित्र करें। गंगा सहित सभी नदियाँ, सम्पूर्ण तीर्थ, सातों समुद्र और विविध जलाशय मुझे शुद्ध बनाएं। साथ ही अदिति जैसी सती स्त्रियाँ, यक्ष, सिद्धगण, सर्पलोक, औषधियाँ और तीनों लोकों के पर्वत भी मुझे पवित्र करें।

इन दिव्य मंत्रों का उच्चारण करते हुए जब व्रती स्नान संपन्न करता है, तब उसे स्नान के उपरांत हाथ में पवित्र पविः धारण करके देवताओं, ऋषियों, मानव समाज और पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करना चाहिए। इस प्रकार यह संपूर्ण प्रक्रिया कार्तिक स्नान को सफल और फलदायी बनाती है।

कार्तिक मास में जब व्रती पितरों के लिए तर्पण करता है, तब जितने तिल उस तर्पण में प्रयुक्त होते हैं, उतने वर्षों तक उसके पितृगण स्वर्गलोक में निवास करने का पुण्य प्राप्त करते हैं। पितृ तर्पण के पश्चात् व्रती को स्नान से निकलकर शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद प्रातःकालीन सभी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर पुनः भगवान विष्णु की उपासना करना अनिवार्य माना गया है।

शास्त्रों में वर्णित है कि व्रती को समस्त तीर्थों और वहाँ प्रतिष्ठित देवताओं का ध्यान करते हुए पूरी श्रद्धा और सावधानी के साथ भगवान श्रीविष्णु को चंदन, पुष्प और फल अर्पित करना चाहिए। अर्घ्य अर्पण करते समय भक्त यह भावना प्रकट करता है – “हे प्रभु! इस पवित्र कार्तिक मास में मैंने विधिपूर्वक स्नान किया है। अब आप राधारानी सहित मेरे द्वारा अर्पित इस अर्घ्य को स्वीकार करें।”

इसके पश्चात नियम है कि व्रती वेदों में निपुण ब्राह्मणों का आदरपूर्वक पूजन करे। उन्हें चंदन, पुष्प और ताम्बूल आदि श्रद्धाभाव से अर्पित किए जाएँ। ब्राह्मणों की सेवा और सम्मान करने के बाद व्रती को बार-बार साष्टांग प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि इससे व्रत की पूर्णता और पुण्यफल की वृद्धि होती है।

शास्त्रों में वर्णित है कि ब्राह्मणों के चरणों में तीर्थों का निवास माना गया है, उनके मुख में वेदों का वास है और उनके सम्पूर्ण शरीर में देवताओं का अधिष्ठान रहता है। अतः जब कोई श्रद्धालु ब्राह्मणों की विधिवत पूजा करता है, तो वस्तुतः वह सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त करता है। इस धरती पर स्वयं भगवान विष्णु गुप्त रूप से ब्राह्मण स्वरूप में निवास करते हैं, इसलिए कल्याण की इच्छा रखने वाले किसी भी मनुष्य को ब्राह्मण का अपमान कभी नहीं करना चाहिए।

आगे यह विधान आता है कि एकाग्रचित्त होकर भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और तुलसी के पौधे की पूजा करके उसकी परिक्रमा करनी चाहिए। श्रद्धालु को तुलसी के समक्ष प्रणाम करते हुए यह भाव प्रकट करना चाहिए – “हे देवी तुलसी! देवताओं ने प्राचीन काल से आपका निर्माण किया और महान ऋषियों ने आपका पूजन किया है। आप भगवान विष्णु की अति प्रिय हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूँ, आप मेरी समस्त पाप बाधाओं का नाश करें।”

इसके बाद स्थिर मन से विष्णु भगवान की पौराणिक कथाओं का श्रवण करना चाहिए और पुनः वेदों में पारंगत ब्राह्मणों का आदरपूर्वक पूजन करना चाहिए। जो भी साधक इस प्रकार पूरे श्रद्धा-भाव से कार्तिक व्रत का अनुष्ठान करता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।

ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि कार्तिक व्रत ऐसा महाव्रत है, जो सभी प्रकार के पापों और रोगों का नाश करता है, साधक को उत्तम बुद्धि प्रदान करता है, पुत्र-पौत्र और धन-धान्य की वृद्धि करता है तथा अंततः मोक्ष दिलाने वाला सिद्ध होता है। इस संसार में कार्तिक मास के व्रत के समान श्रेष्ठ और मुक्तिदायक कोई अन्य व्रत नहीं है।

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