Dahi Handi 2025 Date: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के साथ-साथ दही हांडी का पर्व भी उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। यह पर्व परंपरागत रूप से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन आयोजित किया जाता है और विशेष रूप से महाराष्ट्र में इसकी अद्भुत रौनक देखने को मिलती है। दही हांडी पूरी तरह भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस दिन लोग ऊंचाई पर बंधी मटकी को फोड़ने के लिए मानव पिरामिड का निर्माण करते हैं, जो श्रीकृष्ण के माखन चुराने की लीला का प्रतीक है। वर्ष 2025 में दही हांडी का आयोजन 17 अगस्त, रविवार को होगा, हालांकि कुछ लोग इसे 16 अगस्त को भी मनाएंगे, क्योंकि वे जन्माष्टमी का पर्व 15 अगस्त को मना रहे हैं।

यह उत्सव भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को पड़ता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, नवमी तिथि 16 अगस्त 2025 की रात 9:34 बजे आरंभ होगी और 17 अगस्त की सुबह 7:24 बजे समाप्त होगी। इस अवसर पर देशभर में, विशेषकर महाराष्ट्र, गुजरात, मथुरा, वृंदावन और गोकुल में, श्रद्धालु बड़े हर्ष और उत्साह के साथ दही हांडी का पर्व मनाते हैं।
दही हांडी का उत्सव क्यों मनाया जाता है? (Dahi Handi 2025)
दही हांडी एक उत्साह और रोमांच से भरा पारंपरिक पर्व है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, विशेषकर माखन चुराने की घटना को स्मरण करने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर मिट्टी की एक हांडी (मटकी) को ऊंचाई पर रस्सी से बांधकर टांगा जाता है, जिसके भीतर दही, माखन, मिठाइयां और कई बार सिक्के भी रखे जाते हैं। युवाओं की टीमें, जिन्हें ‘गोविंदा’ कहा जाता है, एक-दूसरे के कंधों पर चढ़कर मानव पिरामिड का निर्माण करती हैं और ऊंचाई पर लटकी इस हांडी को फोड़ने का प्रयास करती हैं।
पूरे आयोजन के दौरान ढोल-नगाड़ों की गूंज, भक्ति गीतों की मधुरता और ‘गोविंदा आला रे’ के जोशीले नारों से वातावरण पूरी तरह उत्सवमय हो उठता है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि एकता, साहस और सामूहिक सहयोग की भावना का भी संदेश देता है।
कैसी हुई दही हांडी परंपरा की शुरुआत?
दही हांडी उत्सव की शुरुआत का इतिहास द्वापर युग तक पहुंचता है और यह सीधे भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की मनमोहक लीलाओं से जुड़ा हुआ है। बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण को दही और माखन अत्यंत प्रिय थे। वे अपने सखाओं के साथ मिलकर गोकुल की गोपियों के घरों में चुपके से प्रवेश करते और माखन-दही चुरा ले जाते। गोपियों ने जब यह देखा कि कान्हा बार-बार उनकी मटकियों तक पहुंच जाते हैं, तो उन्होंने मटकी को बचाने के लिए उसे ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया।
लेकिन नटखट कृष्ण अपने मित्रों के साथ मिलकर मानव पिरामिड बनाते और ऊपर लटकी मटकी तक पहुंचकर उसे फोड़ देते थे। उनकी यह बाल लीला इतनी लोकप्रिय हुई कि समय के साथ यह परंपरा एक जीवंत उत्सव के रूप में विकसित हो गई, जिसे आज हम दही हांडी के नाम से बड़े धूमधाम से मनाते हैं। यह लोकप्रीय परंपरा सदियों से लोगों के हृदय में अपनी जगह बनाए हुए है।
दही हांडी का महत्व (Dahi Handi Mahatva)
दही हांडी केवल एक धार्मिक आयोजन या खेल भर नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता, सहयोग और सामूहिक प्रयास का प्रतीक है। इस पर्व से यह प्रेरणा मिलती है कि अगर लोग मिलकर कार्य करें तो किसी भी कठिन लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। मानव पिरामिड बनाने की प्रक्रिया साहस, धैर्य और टीमवर्क का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है। साथ ही, यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की नटखट, प्रेमपूर्ण और बाल सुलभ लीलाओं को स्मरण करने का अवसर भी प्रदान करता है।
समय के साथ इस उत्सव का रूप भी बदला है और आजकल कई स्थानों पर दही हांडी को एक प्रतियोगिता के रूप में आयोजित किया जाता है, जिसमें विजेता टीम को नकद पुरस्कार, ट्रॉफी और सम्मान दिया जाता है।
कहां मनाया जाता है सबसे ज्यादा
दही हांडी का पर्व सबसे अधिक महाराष्ट्र में लोकप्रिय है, विशेष रूप से मुंबई, पुणे और ठाणे में इसका भव्य आयोजन होता है। इसके अलावा गुजरात तथा उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन और गोकुल में भी यह पर्व बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। खासकर मुंबई में इस अवसर पर विशाल आयोजन होते हैं, जहां हजारों-लाखों लोग शामिल होते हैं और विभिन्न टीमों के बीच बड़े-बड़े इनामों के साथ रोमांचक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
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FAQs
दही हांडी 2025 कब है?
दही हांडी 2025 का पर्व 17 अगस्त, रविवार को मनाया जाएगा। हालांकि कुछ स्थानों पर यह 16 अगस्त को भी आयोजित किया जाएगा, क्योंकि वहां जन्माष्टमी का पर्व 15 अगस्त को मनाया जा रहा है।
दही हांडी का संबंध भगवान कृष्ण से कैसे है?
दही हांडी की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की बाल लीलाओं से जुड़ी है। वे अपने दोस्तों के साथ मानव पिरामिड बनाकर ऊंचाई पर लटकी मटकी को फोड़ते थे, जिसमें दही, माखन और मिठाई भरी होती थी।
दही हांडी कहां सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाई जाती है?
यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे और ठाणे में भव्य रूप से मनाया जाता है। इसके अलावा गुजरात, मथुरा, वृंदावन और गोकुल में भी इसका खास महत्व है।
दही हांडी का मुख्य उद्देश्य और महत्व क्या है?
दही हांडी केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि एकता, साहस और टीमवर्क का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि सामूहिक प्रयास से किसी भी कठिन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।