Vrindavan Janmashtami 2025 Mangala Aarti Time: वृंदावन स्थित प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी का पर्व अत्यंत भव्य और विशेष रूप से मनाया जाता है। इस अवसर पर पूरा मंदिर फूलों, रंग-बिरंगे पर्दों, दीपों और अन्य सजावटों से अलंकृत किया जाता है। आधी रात के पावन क्षण में भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक संपन्न होता है। इसके अगले दिन नंदोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु भक्त कान्हाजी के विशेष दर्शन का लाभ प्राप्त करते हैं। विशेष बात यह है कि वर्ष भर में केवल इसी दिन बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती का आयोजन किया जाता है, जो भक्तों के लिए अत्यंत दुर्लभ और सौभाग्यशाली अवसर माना जाता है।

प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन के स्वागत की तैयारी भक्तजन कई दिनों पूर्व से ही आरंभ कर देते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना, व्रत-उपवास, कान्हाजी का सुंदर श्रृंगार, भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण का आयोजन किया जाता है। इस पर्व की सबसे भव्य और मनमोहक छटा मथुरा और वृंदावन में देखने को मिलती है, क्योंकि यही वह पवित्र भूमि है जहाँ श्रीकृष्ण ने अपना बाल्यकाल बिताया और अनेक अद्भुत लीलाओं का प्रदर्शन किया।
विशेष रूप से वृंदावन और मथुरा में जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष अलग-अलग तिथियों पर आयोजित किया जाता है। इस दिन बांके बिहारी मंदिर में वर्ष में केवल एक बार होने वाली मंगला आरती का आयोजन भी किया जाता है, जो भक्तों के लिए अत्यंत दुर्लभ और सौभाग्यशाली अवसर होता है। अब आइए विस्तार से जानें कि इस वर्ष मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी किस तिथि को मनाई जाएगी।
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी का आयोजन कब होगा
श्री बांके बिहारी मंदिर में इस वर्ष जन्माष्टमी का भव्य उत्सव 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। इस पावन अवसर पर मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्रों को रंग-बिरंगे पुष्पों, आकर्षक पर्दों और जगमगाते दीपों से सुसज्जित किया जाता है। मध्य रात्रि के शुभ समय में गर्भगृह में भगवान श्रीकृष्ण का विशेष अभिषेक संपन्न होता है, जिसमें उन्हें दूध, दही, शहद, जल और घी जैसे पवित्र द्रव्यों से स्नान कराया जाता है।
अभिषेक के उपरांत भगवान को सुंदर एवं भव्य वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनका सोलह श्रृंगार किया जाता है, जिससे उनका दिव्य रूप और भी मोहक हो उठता है। यह पूरा समारोह अत्यंत पवित्र और विशिष्ट होता है, लेकिन इसकी विशेषता यह है कि इस दौरान आम भक्तों के लिए दर्शन का अवसर उपलब्ध नहीं होता, जिससे यह अनुष्ठान पूर्णतः निजी और पारंपरिक रूप में सम्पन्न किया जाता है।
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती का समय
श्री बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी के पावन अवसर पर मंगला आरती का आयोजन अत्यंत विशेष महत्व रखता है। इस दिन रात लगभग 2 बजे से ही भक्तों के लिए दर्शन प्रारंभ हो जाते हैं और यह क्रम प्रातः 6 बजे तक चलता है। तड़के सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर मंगला आरती संपन्न होती है, जो पूरे वर्ष में केवल इसी एक दिन की जाती है। आरती के उपरांत सुबह 5 बजे बिहारीजी को भोग अर्पित किया जाता है, जिसमें विविध प्रकार के व्यंजन प्रेमपूर्वक सजाए जाते हैं। इसके बाद 6 बजे के पश्चात मंदिर के द्वार दर्शन के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
परंपरा के अनुसार, इस दिन बिहारीजी केवल एक बार जागते हैं और उसी पावन क्षण में मंगला आरती की जाती है। इस आरती का समय ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है, जिससे यह अनुष्ठान शास्त्रीय विधि और पूर्ण श्रद्धा के साथ संपन्न हो सके।
नंदगांव और श्री बांके बिहारी मंदिर में नंदोत्सव की तिथि
जन्माष्टमी के अगले दिन, अर्थात भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को, श्री बांके बिहारी मंदिर में नंदोत्सव का आयोजन बड़े उल्लास और भक्ति भाव से किया जाता है। इस वर्ष यह पावन उत्सव 17 अगस्त, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन मंदिर परिसर में भक्तों और पुजारियों द्वारा प्रसाद स्वरूप मिठाइयां, ताजे फल, रंग-बिरंगे खिलौने और सिक्के बांटे जाते हैं। साथ ही, भगवान कृष्ण के जन्म उत्सव की खुशी में भजन-कीर्तन और पारंपरिक गीत गाए जाते हैं। नंदोत्सव का यह आनंददायक कार्यक्रम दोपहर 12 बजे होने वाली राजभोग आरती तक निरंतर चलता है।
वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर में दर्शन की एक विशेष परंपरा भी देखने को मिलती है। यहां भगवान के दर्शन के दौरान समय-समय पर उनके सामने पर्दा डाल दिया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक और भावनात्मक कारण है। मान्यता है कि श्रीकृष्ण का रूप अत्यंत मनमोहक और आकर्षक है, जिसे देखकर भक्त उनकी ओर पूर्णतः मोहित हो जाते हैं। वहीं, उनके बाल स्वरूप का स्वभाव अत्यंत चंचल है, जिसके कारण वे भक्तों की गहन भक्ति से वशीभूत होकर उनके साथ जाने की इच्छा करने लगते हैं।
ऐसी स्थिति से बचने के लिए, भक्तों और भगवान के बीच पर्दा डाला जाता है ताकि न तो भक्त मोहाविष्ट होकर स्वयं को खो दें और न ही भगवान उनकी भक्ति में बहकर उनके साथ चले जाएं। यह अद्वितीय परंपरा सदियों से इस मंदिर में निभाई जा रही है और आज भी उतनी ही श्रद्धा और भाव के साथ जारी है।
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