August Amavasya 2025 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि विशेष महत्व रखती है, परंतु भाद्रपद मास की अमावस्या का धार्मिक, आध्यात्मिक और पितृ कार्यों के दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। भाद्रपद अमावस्या भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है, जो आमतौर पर अगस्त-सितंबर के महीने में पड़ती है। यह दिन न केवल पितरों को समर्पित होता है, बल्कि तांत्रिक साधनाओं, दोष निवारण, और विशेष प्रकार की उपासनाओं के लिए भी अत्यंत फलदायी माना जाता है।

यह अमावस्या ‘कुशोत्पाटिनी अमावस्या’ के नाम से भी जानी जाती है, क्योंकि इसी दिन से कुश (एक पवित्र घास) को काटने की परंपरा प्रारंभ होती है, जो श्राद्ध पक्ष और धार्मिक कार्यों में आवश्यक मानी जाती है। यह दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा और तर्पण करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
अगस्त अमावस्या 2025 तिथि / कुशोत्पाटिनी अमावस्या 2025 कब?
भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि वर्ष 2025 में 22 अगस्त को प्रातः 11 बजकर 55 मिनट से आरंभ होकर, 23 अगस्त को प्रातः 11 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी।
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
- पितृ तर्पण एवं पितृ दोष निवारण
भाद्रपद अमावस्या को पितरों की आत्मा की तृप्ति हेतु तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। जो व्यक्ति अपने पितरों की तिथि नहीं जानते, वे इसी दिन श्रद्धा से तर्पण करें तो पितरों को संतोष प्राप्त होता है। ऐसा करने से पितृ दोष भी शांत होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। - कुश की विशेषता
कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन ब्राह्मणों द्वारा कुश एकत्रित करने की परंपरा है। धार्मिक कार्यों में शुद्धता एवं आत्मशुद्धि हेतु कुश का विशेष प्रयोग होता है। इसके बिना वैदिक कर्म अधूरे माने जाते हैं। भाद्रपद अमावस्या से कुश एकत्र करने की शुरुआत होती है, जो पूरे श्राद्ध पक्ष में उपयोग की जाती है। - तांत्रिक साधनाओं का योग
तांत्रिक मतानुसार यह अमावस्या रात्रीकालीन साधनाओं और सिद्धियों के लिए अत्यंत उपयोगी होती है। विशेष मंत्रों, यंत्रों और तंत्रों की सिद्धि हेतु यह रात्रि प्रभावशाली होती है। साधक इस दिन उपवास रखकर विशेष रूप से मंत्रजप और साधना करते हैं। - नदी स्नान और दान-पुण्य का महत्त्व
भाद्रपद अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी, तालाब या जल स्रोत में स्नान करने का अत्यंत पुण्यफल मिलता है। स्नान के बाद तिल, वस्त्र, भोजन, और दक्षिणा का दान ब्राह्मणों को करना अत्यंत फलदायी माना गया है। इससे समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में शुभता आती है।
भाद्रपद अमावस्या पर होने वाले लाभ
- पितरों की कृपा प्राप्त होती है
जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक इस दिन पिंडदान, तर्पण एवं श्राद्ध करता है, उसे पितरों की कृपा प्राप्त होती है। पितृ आशीर्वाद से वंश की वृद्धि होती है, संतान सुख प्राप्त होता है और जीवन के अनेक बाधाएं स्वतः दूर हो जाती हैं। - धन और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है
मान्यता है कि इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी-नारायण, शिव या कालभैरव की पूजा करने से आर्थिक संकट दूर होते हैं। साथ ही, दान देने से दरिद्रता का नाश होता है और घर में सुख-शांति का वास होता है। - पापों से मुक्ति और आत्मशुद्धि
इस दिन उपवास, ब्रह्मचर्य और ध्यान का पालन करने से पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन के पाप नष्ट होते हैं। जल में तिल मिश्रित स्नान एवं तर्पण से आत्मा की शुद्धि होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। - नकारात्मक शक्तियों का नाश
भाद्रपद अमावस्या को रात्रि के समय की गई विशेष साधनाएं, हनुमान जी का उपासना, तंत्र पूजा या रक्षा कवच निर्माण जैसे उपाय नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव को समाप्त करते हैं। विशेषकर जिन लोगों पर बार-बार संकट आते हैं, उनके लिए यह दिन समाधानकारी सिद्ध हो सकता है।
भाद्रपद अमावस्या की पूजा विधि
भाद्रपद अमावस्या पर श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। नीचे दी गई है इस दिन की सामान्य पूजा विधि:
1. प्रातःकाल स्नान एवं संकल्प
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें।
- स्नान के बाद तिल मिश्रित जल से आचमन करें और पूर्वजों के लिए संकल्प लें कि आप तर्पण, पिंडदान या श्राद्ध करेंगे।
- यदि घर में पितरों की तस्वीरें हों, तो उन्हें स्वच्छ वस्त्र पहनाएं और पुष्प अर्पित करें।
2. तर्पण और पिंडदान
- कुशासन पर बैठकर पवित्र जल, तिल, चावल और पुष्प से पितरों को तर्पण दें।
- पिंडदान हेतु चावल, तिल और घी मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पृथ्वी पर अर्पित किया जाता है।
- इस दौरान “ॐ पितृभ्यः स्वाहा” मंत्र का जप किया जा सकता है।
3. विशेष देव पूजन
इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव, भगवान विष्णु, भगवती काली, भैरव बाबा या पीपल के वृक्ष की पूजा करना अत्यंत फलदायी होता है।
- शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और धतूरा अर्पित करें।
- विष्णु जी को तुलसी पत्र और पंचामृत अर्पित करें।
- भैरव बाबा को सरसों का तेल, नारियल और काले तिल चढ़ाएं।
- पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा करें और दीपक जलाएं।
4. हनुमान जी की उपासना
अगर किसी व्यक्ति पर नकारात्मक ऊर्जा या ग्रहदोष का प्रभाव है, तो वह इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करके और सिंदूर व चमेली का तेल चढ़ाकर हनुमान जी की पूजा करे। यह उपाय रक्षा कवच की तरह कार्य करता है।
5. दान-पुण्य
- इस दिन ब्राह्मणों को तिल, अन्न, वस्त्र, दक्षिणा, और पितरों की पसंदीदा चीजें जैसे खीर, पूड़ी आदि का दान करें।
- गौ सेवा, कुत्ते को रोटी, कौवे को भोजन और चींटियों को आटा देने से भी शुभ फल मिलते हैं।
भाद्रपद अमावस्या पर पूज्य देवता
भाद्रपद अमावस्या पर जिन देवी-देवताओं की विशेष रूप से पूजा की जाती है, वे निम्नलिखित हैं:
1. भगवान शिव
इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से जीवन के सभी दोष समाप्त होते हैं। विशेष रूप से पितृ दोष, कालसर्प दोष, और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।
2. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी
धन की प्राप्ति और दरिद्रता से मुक्ति के लिए विष्णु-लक्ष्मी की पूजा अत्यंत प्रभावी मानी गई है। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी शुभ माना जाता है।
3. काल भैरव
रात्रि साधनाओं और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा के लिए कालभैरव की उपासना अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। विशेषकर रात्रि के समय सरसों का तेल का दीपक जलाकर भैरव जी का स्मरण करना लाभदायक होता है।
4. पीपल वृक्ष (ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास)
पीपल के वृक्ष को साक्षात त्रिदेवों का निवास माना गया है। भाद्रपद अमावस्या पर पीपल के नीचे दीपक जलाना, परिक्रमा करना और जल अर्पित करना बहुत ही पुण्यदायी होता है।
क्यों है भाद्रपद अमावस्या एक विशेष तिथि?
भाद्रपद अमावस्या न केवल पितृकार्य के लिए बल्कि आत्मिक शुद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए भी एक शक्तिशाली दिन है। इस दिन की गई साधनाएं, दान और तर्पण न केवल पितरों को प्रसन्न करते हैं बल्कि साधक के जीवन में चमत्कारी परिवर्तन भी लाते हैं। घर में सुख-शांति बनी रहती है, धन का आगमन होता है और रोग-दोष दूर होते हैं।
इस दिन पवित्र मन और श्रद्धा के साथ उपवास, पूजा और सेवा कार्य करने से समस्त पापों का नाश होता है और जीवन में सौभाग्य, शांति एवं समृद्धि आती है।
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