Neha Pandey
गोलोक — जहाँ प्रेम स्वयं जन्म लेता है
यह वह धाम है जहाँ श्रीकृष्ण अपनी नित्य लीला करते हैं। यहाँ के पुष्प, पर्वत, हवा – सबमें प्रेम ही प्रेम है। इसी पावन धाम के केंद्र में है — रस-मंडल!
रस-मंडल में दिव्य सिंहासन पर विराजमान श्रीकृष्ण
उनके मन में आनंद की मधुर इच्छा जगी। और बस उसी क्षण घटा वह रहस्य…!
जब बाएँ अंग से प्रकट हुईं श्री राधा
श्रीकृष्ण के बाएँ अंग से प्रकट हुईं एक दिव्य कन्या — राधा। पिघले हुए सोने जैसे शरीर वाली, तेजस्वी, मधुर मुस्कान वाली।
सौंदर्य जिसकी तुलना कोई नहीं कर सकता
उनका मुख शरद ऋतु के खिले कमल को भी लज्जित कर दे। चारों ओर उनकी आभा फैल गई। स्वयं श्रीकृष्ण भी उन्हें देखकर आनंद विभोर हो गए।
सेवा की उत्कंठा से श्री राधारानी का पहला कार्य
कुछ नहीं कहा… सीधे पुष्प चुनने दौड़ पड़ीं — श्रीहरि की सेवा के लिए!
क्यों पड़ा उनका नाम ‘राधा’? “रा” — रस-मंडल का प्रतीक “धा” — धावन यानी दौड़ना जो रस में प्रकट हो और सेवा में दौड़े — वही तो राधा है!
राधा और कृष्ण – एक आत्मा, दो रूप
राधा हैं ऊर्जा — कृष्ण हैं ऊर्जावान। जैसे अग्नि और उसकी गर्मी, अलग नहीं किए जा सकते।
सब एक ही स्वर में कहते हैं: “राधा और कृष्ण वास्तव में एक ही परब्रह्म हैं, जो प्रेम को अनुभव करने के लिए दो रूपों में प्रकट हुए हैं।”
शास्त्रों में क्या कहा गया है श्री राधा-कृष्ण के बारे में?