क्या भंडारे का प्रसाद खाना सही है? संत प्रेमानंद जी महाराज ने हाल ही में बताया है कि मंदिर, आश्रम और लंगर का भोजन किसे और कैसे ग्रहण करना चाहिए। 

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मंदिर का प्रसाद खा सकते हैं या नहीं? संत जी कहते हैं कि मंदिर में चढ़ाया गया प्रसाद बिल्कुल खा सकते हैं क्योंकि वह भगवान को अर्पित होता है। 

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भंडारे या लंगर से क्यों बचें? सामान्य भंडारे और लंगर जो दान से चलते हैं, उन्हें फ्री में खाना गृहस्थ लोगों के लिए उचित नहीं माना गया है।

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आश्रमों में क्या करें? अगर आप किसी तीर्थ या आश्रम में भोजन करें और वह मुफ्त हो, तो अपने सामर्थ्य अनुसार दान जरूर करें।

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मुफ्त का भोजन क्यों न लें? प्रेमानंद जी के अनुसार, गृहस्थ लोगों को बिना योगदान के कुछ भी मुफ्त में नहीं खाना चाहिए। यह आध्यात्मिक रूप से अनुचित है। 

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दान देना क्यों जरूरी है? दान न केवल पुण्य है, बल्कि यह भोजन को पवित्रता और आस्था से जोड़ता है। इससे जीवन में संतुलन आता है। 

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गृहस्थ जीवन के लिए विशेष नियम जो लोग परिवार और संसार में रहते हैं, उन्हें विशेष सतर्कता रखनी चाहिए कि क्या, कहां और कैसे खाएं। 

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क्या यह नियम सभी पर लागू है? यह नियम विशेषकर उन लोगों के लिए है जो अध्यात्म और गृहस्थ धर्म दोनों को संतुलित करना चाहते हैं।

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क्या आप पालन करते हैं यह नियम? अब आप तय करें—क्या आप भी भंडारे या लंगर में बिना दान के भोजन ग्रहण करते हैं? संत प्रेमानंद जी की सीख पर विचार करें। 

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