Vishwakarma Puja 2025: हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा को प्रथम शिल्पकार और ब्रह्मांड के वास्तु-विशारद के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें दिव्य नगरों, राजमहलों और असाधारण अस्त्र-शस्त्रों का निर्माता माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उन्हीं की शिल्पकला से द्वारका नगरी, इंद्रप्रस्थ और लंका का निर्माण हुआ था।
निर्माण और सृजन के देवता
विश्वकर्मा देवता को निर्माण, शिल्पकला और सृजन का अधिष्ठाता कहा जाता है। कारीगर, अभियंता और वास्तुकार इस दिन विशेष रूप से उनकी पूजा करते हैं, ताकि उनके कार्यों में प्रगति, सफलता और समृद्धि बनी रहे।यह पर्व प्रायः भाद्रपद माह के अंत में, कन्या संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है, जब सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। यही कारण है कि हर वर्ष यह उत्सव सितंबर माह में मनाया जाता है।
भारत के अनेक राज्यों – जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, झारखंड, ओडिशा और कर्नाटक – में इस पर्व को बड़े ही उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
विश्वकर्मा पूजा 2025 की तिथि और समय
इस पूजा का आयोजन हर वर्ष कन्या संक्रांति के दिन किया जाता है। इस अवसर पर सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करते हैं।
विश्वकर्मा पूजा 2025 की तिथि: 17 सितंबर, बुधवार
कन्या संक्रांति का समय: प्रातः 01:55 बजे
इस दिन सूर्य देव उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में विराजमान रहेंगे। साथ ही, इसी दिन भाद्रपद मास का समापन भी होगा।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व
व्यवसाय और निर्माण में सफलता
यह पर्व उद्योग, व्यापार और निर्माण कार्यों से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कार्य में तरक्की और सफलता की प्राप्ति होती है।इस दिन मशीनों, औजारों और उपकरणों को साफ कर उनका पूजन किया जाता है। यह मान्यता है कि ऐसा करने से उपकरण सुरक्षित रहते हैं और कार्य सुचारु रूप से चलता है।विश्वास किया जाता है कि विश्वकर्मा जी की आराधना से कार्य में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं, अपशकुन से रक्षा होती है और जीवन में समृद्धि आती है।
विश्वकर्मा पूजा विधि
- स्थल की सफाई – पूजा से पहले घर, कार्यस्थल और पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ किया जाता है।
- वेदी की स्थापना – भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र को लाल या पीले स्वच्छ वस्त्र पर रखकर सजाया जाता है।
- श्रृंगार और अर्पण – भगवान को फूल-माला पहनाई जाती है तथा चंदन, अक्षत और सिंदूर से उनका श्रृंगार किया जाता है।
- प्रसाद अर्पण – गेंदा के फूल, लड्डू, फल और अन्य मिठाइयाँ भोग स्वरूप चढ़ाई जाती हैं।
- मंत्र-जप – मंत्र या स्तोत्र का जाप कर उनका स्मरण किया जाता है।
- दीप और धूप – दीपक और धूप जलाकर वातावरण को पवित्र और सकारात्मक बनाया जाता है।
- उपकरण पूजन – मशीनों, औजारों, यंत्रों, कंप्यूटर और वाहनों पर चंदन व अक्षत अर्पित कर उनका पूजन किया जाता है।
- आरती और प्रार्थना – भगवान की आरती उतारी जाती है, भजन-कीर्तन गाए जाते हैं और सफलता व समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।
- प्रसाद वितरण – अंत में चढ़ाया गया प्रसाद परिवार, मित्रों और सहयोगियों में बाँटा जाता है।
- सामूहिक भोजन (भोज) – कई स्थानों पर पूजा के बाद सामूहिक भंडारा या भोजन का आयोजन किया जाता है, जिससे आपसी भाईचारे और सामाजिक एकता की भावना मजबूत होती है।
विश्वकर्मा पूजा केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि मेहनतकश लोगों की आस्था और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि श्रम और तकनीकी कौशल ही समाज की प्रगति का आधार हैं। भगवान विश्वकर्मा की पूजा से हम अपने कार्यक्षेत्र में न सिर्फ सफलता और समृद्धि की कामना करते हैं, बल्कि औजारों और मशीनों के महत्व को भी स्वीकारते हैं। इस दिन की पूजा से यह संदेश मिलता है कि परिश्रम, ईमानदारी और नवाचार से ही जीवन और समाज को नई दिशा दी जा सकती है।
🌺आरती – श्री विश्वकर्मा जी 🌺
ॐ जय श्री विश्वकर्मा, जग के पालनहार।
सृष्टि के प्रथम शिल्पी, करो सबका उद्धार॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा…
आदि काल से जग में, ज्ञान दिया अपार।
कारीगर के जीवन में, भर दो सुख-समृद्धि अपार॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा…
औजार, यंत्र, मशीनें, सबकी रक्षा करो।
व्यवसाय और उद्योग में, उन्नति पथ पर धर दो॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा…
भक्त जनों की सुनकर, हर लो सब संताप।
संकट मोचन बनकर दो, शांति और प्रताप॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा…
चरण तुम्हारे स्मरण से, मन को मिले उजास।
सुख-शांति और वैभव दे, मिटा दो सब त्रास॥
ॐ जय श्री विश्वकर्मा…
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