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Mahakumbh 2025: कैसे बनती है महिला नागा साधु? जानिए मासिक धर्म के समय गंगा स्नान का क्या नियम होता है इनके लिए

महाकुंभ में नागा साधु सदैव से ही लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। उनका असाधारण जीवन और भक्ति का मार्ग, जिसे उन्होंने सांसारिक मोह-माया त्यागकर अपनाया है, आम लोगों के लिए हमेशा जिज्ञासा का विषय रहता है। नागा साधु 17 प्रकार के श्रृंगार कर भगवान शिव की भक्ति में डूबे रहते हैं। पुरुष नागा साधुओं के बारे में तो अक्सर चर्चा होती है, लेकिन महिला नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इनकाजीवन भी उतना ही गूढ़ और भक्ति से परिपूर्ण है। आइए, इस अनोखी और रहस्यमय दुनिया के बारे में अधिक जानने का प्रयास करें।

नागा साधु

नागा साधुओं से विपरीत होती है महिला नागा साधु

इनका जीवन पुरुष नागा साधुओं से अलग और विशिष्ट होता है। वे सांसारिक मोह-माया को पूरी तरह त्यागकर आध्यात्मिक जीवन अपनाती हैं और गृहस्थ जीवन से पूर्ण विराम ले लेती हैं। उनका दिन पूजा-पाठ और साधना से प्रारंभ होकर उसी में समाप्त होता है। महिला नागा साधु भगवान शिव और माता पार्वती के साथ-साथ माता काली की भी गहन भक्ति करती हैं। उनके लिए पूजा और साधना जीवन का प्रमुख आधार बन जाते हैं। इस आध्यात्मिक पथ पर चलने के दौरान उन्हें कई कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन वे अपने तप और भक्ति से इन्हें पार कर लेती हैं।

महिला नागा साधु बनने के लिए 10-15 साल तक का कठोर ब्रह्मचर्य जरूरी

महिला नागा साधु बनने का मार्ग अत्यंत कठिन और चुनौतीपूर्ण होता है। इसमें 10 से 15 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य होता है। इस दौरान महिलाओं को अपने गुरु के समक्ष अपनी योग्यता और भगवान के प्रति समर्पण का प्रमाण देना पड़ता है। नागा साधु बनने की प्रक्रिया में जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन करना भी अनिवार्य होता है। यह प्रक्रिया केवल आध्यात्मिक परीक्षा ही नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक सहनशक्ति का भी परीक्षण करती है। इस कठिन मार्ग को अपनाते हुए महिलाओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन उनका दृढ़ निश्चय और तपस्या उन्हें इस लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायक बनता है।

महिला नागा साधुओं को ‘माता’ कहकर किया जाता है संबोधित

महिला नागा साधु बनने के बाद, उन्हें सभी साधु-साध्वियां आदरपूर्वक ‘माता’ कहकर संबोधित करती हैं। पुरुष नागा साधुओं के दो प्रकार होते हैं—वस्त्रधारी और दिगंबर। यह उनका व्यक्तिगत चयन होता है कि वे वस्त्र धारण करें या पूरी तरह निर्वस्त्र रहें। लेकिन महिला नागा साधुओं के लिए यह अनिवार्य नियम है कि वे केसरिया वस्त्र धारण करें। उन्हें दिगंबर रहने की अनुमति नहीं होती। कुंभ मेले के दौरान महिला नागा साधुओं के लिए विशेष रूप से ‘माई बाड़ा’ बनाया जाता है। इस स्थान पर सभी महिला नागा साधु माताएं निवास करती हैं और यह उनकी सुरक्षा और एकता का प्रतीक माना जाता है।

क्या महिला नागा साधु निर्वस्त्र रहती है?

महिला नागा साधुओं के लिए पुरुष नागा साधुओं की तरह निर्वस्त्र रहने का कोई नियम नहीं है। वे दिगंबर (बिना वस्त्र के) नहीं रहतीं, बल्कि हमेशा केसरिया वस्त्र धारण करती हैं। इन वस्त्रों का सिला हुआ होना आवश्यक नहीं होता। केसरिया रंग उनकी धार्मिक आस्था और तपस्वी जीवन का प्रतीक माना जाता है। महिला नागा साधु इस वस्त्र को इस प्रकार धारण करती हैं कि उनका पूरा शरीर ढका रहे। यह उनकी मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने का एक अहम नियम है।

महिला नागा साधु क्या खाती हैं और क्या है दिनचर्या

महिला नागा साधुओं की दिनचर्या पूरी तरह से आध्यात्मिक साधना पर आधारित होती है। वे प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिवजी का जाप और ध्यान करती हैं। दोपहर के समय भोजन ग्रहण करने के बाद वे पुनः भगवान शिव का ध्यान करती हैं। संध्या में वे दत्तात्रेय भगवान की आराधना में लीन हो जाती हैं। इनका भोजन सादा और प्राकृतिक होता है, जिसमें कंदमूल, फल, जड़ी-बूटियां और विभिन्न प्रकार की पत्तियां शामिल होती हैं। महिला नागा साधु बिना पका हुआ भोजन ग्रहण करती हैं, जो उनके तपस्वी जीवन और प्रकृति के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।

पीरियड के दौरान गंगा स्नान का क्या नियम महिला नागा साधु के लिए

कुंभ मेले में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। ये साध्वियां दिगंबर नहीं रहतीं और हमेशा केसरिया रंग के बिना सिले वस्त्र धारण करती हैं। पीरियड्स के दौरान वे इन वस्त्रों में एक छोटा कपड़ा बहाव के स्थान पर उपयोग करती हैं। इस दौरान गंगा स्नान का नियम उनके लिए लागू नहीं होता। वे गंगा में स्नान करने की बजाय, गंगा जल को अपने शरीर पर छिड़ककर पवित्रता बनाए रखती हैं। यह नियम उनकी आध्यात्मिक पवित्रता और धार्मिक अनुशासन को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।

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